बिहार में मतदाता सूची विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से मांगी जानकारी
सुप्रीम कोर्ट का चुनाव आयोग को निर्देश
बिहार में चल रही मतदाता सूची के पुनरीक्षण प्रक्रिया का मामला अब सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गया है। कोर्ट ने चुनाव आयोग को आदेश दिया है कि उन 65 लाख मतदाताओं की पूरी जानकारी प्रस्तुत की जाए, जिनके नाम सूची से हटाए गए हैं। यह निर्देश उस समय आया है जब एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने चुनाव आयोग के 24 जून के आदेश को चुनौती दी है।
मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण
चुनाव आयोग ने 24 जून से बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया शुरू की है, जिसके तहत मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण किया जा रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने आयोग से नौ अगस्त तक विस्तृत जानकारी मांगी है और ADR को भी यह जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है।
हटाए गए मतदाताओं की जानकारी की मांग
सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्ज्वल भुइयां और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह शामिल हैं, ने चुनाव आयोग से कहा है कि उन 65 लाख मतदाताओं के नाम, पते और हटाने के कारणों का पूरा विवरण अदालत और ADR के साथ साझा किया जाए, जिनका नाम 1 अगस्त को जारी मसौदा मतदाता सूची में नहीं है।
ADR की याचिका पर सुनवाई
यह निर्देश एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स द्वारा दायर याचिका के बाद आया है, जिसमें चुनाव आयोग के 24 जून के आदेश को चुनौती दी गई थी। इस आदेश के तहत पूरे देश में मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण करने का निर्देश दिया गया था।
मतदाता पुनरीक्षण की प्रक्रिया
बिहार में 24 जून 2025 से शुरू हुए इस विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया के बाद 30 सितंबर को अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी। इससे पहले 1 अगस्त को मसौदा सूची जारी की जा चुकी है। चुनाव आयोग के अनुसार, 91.69% मतदाताओं ने गणना फॉर्म भरकर इस प्रक्रिया में भाग लिया है।
चुनाव आयोग का बयान
चुनाव आयोग ने 27 जुलाई को एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि बिहार के 7.89 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं में से 7.24 करोड़ लोगों ने गणना फॉर्म जमा किया है। इसका मतलब है कि लगभग 65 लाख लोग सूची में शामिल नहीं किए गए हैं क्योंकि उन्होंने निर्धारित समय तक गणना फॉर्म नहीं भरा। आयोग का कहना है कि यह आंकड़ा SIR प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी को दर्शाता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि केवल आंकड़ों से काम नहीं चलेगा; हटाए गए मतदाताओं के बारे में पारदर्शिता आवश्यक है।