बिहार में विपक्षी गठबंधन को चुनाव आयोग की नई चुनौतियाँ
बिहार में चुनावी चुनौतियाँ
बिहार में विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' को भाजपा और जदयू के साथ चुनावी मुकाबले में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। प्रशांत किशोर ने सत्ता विरोधी वोटों पर अपनी दावेदारी पेश की है, जिससे विपक्ष की स्थिति और भी जटिल हो गई है। इसी बीच, चुनाव आयोग ने मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया शुरू कर दी है। यह पुनरीक्षण 22 वर्षों के बाद हो रहा है, जिसमें लगभग आठ करोड़ मतदाताओं को नए सिरे से पंजीकरण कराना होगा। इसका मतलब है कि पुरानी मतदाता सूची रद्द कर दी गई है और सभी मतदाताओं को नए फॉर्म भरने होंगे, जिसमें जन्म प्रमाण पत्र और ताजा फोटो भी शामिल हैं। इस कार्य के लिए 25 दिन का समय निर्धारित किया गया है।
हालांकि, विपक्ष और स्वतंत्र पत्रकारों ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं, जिसके जवाब में चुनाव आयोग ने आंशिक राहत दी है। आयोग ने बताया कि 2003 में मतदाता बने साढ़े चार करोड़ से अधिक लोगों को जन्म प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं होगी, उन्हें केवल फॉर्म भरना होगा। जबकि बाकी लगभग तीन करोड़ मतदाताओं को पहचान पत्र प्रस्तुत करना होगा।
इस मुद्दे पर विपक्ष ने एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की, जिसमें बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए। उन्होंने बताया कि इस समय बिहार के विभिन्न क्षेत्रों में बाढ़ की स्थिति है, जिससे लोग अपनी जानमाल की सुरक्षा में लगे हुए हैं। ऐसे में मतदाता बनने के लिए उन्हें मजबूर करना और जन्म प्रमाण पत्र जुटाने के लिए बाध्य करना उचित नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले साल लोकसभा चुनाव इसी मतदाता सूची पर हुए थे, और यदि यह सूची गड़बड़ है, तो इसका मतलब है कि लोकसभा चुनाव का परिणाम भी प्रभावित हुआ है।
अब सवाल यह है कि विपक्ष इस स्थिति का सामना कैसे करेगा? भाजपा और जदयू से तो मुकाबला किया जा सकता है, लेकिन चुनाव आयोग के खिलाफ क्या किया जा सकता है? ऐसा प्रतीत होता है कि चुनाव आयोग ने पहले से ही सब कुछ तय कर लिया है। यदि 2003 के बाद मतदाता बने लोग जन्म प्रमाण पत्र नहीं दिखा पाते हैं, तो उनके नाम मतदाता सूची से हटा दिए जाएंगे। विपक्ष को आशंका है कि उनके समर्थकों, विशेषकर मुस्लिम और यादव मतदाताओं के नाम कट सकते हैं। यदि कुछ क्षेत्रों में नाम कट जाते हैं, तो चुनावी मुकाबला कमजोर हो जाएगा। इसके बावजूद, विपक्षी दल सड़क पर उतरने के बजाय न्यायपालिका का रुख कर सकते हैं।