बिहार विधानसभा चुनाव: मोदी और राहुल के बीच की टक्कर
बिहार विधानसभा चुनाव का महत्व
बिहार विधानसभा चुनाव इस बार एनडीए और महागठबंधन के बीच एक महत्वपूर्ण मुकाबला बन गया है, जिसमें जन सुराज पार्टी एक नया पहलू जोड़ रही है। हालांकि, इसकी आधिकारिक घोषणा अभी नहीं हुई है, लेकिन यह चुनाव नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच सीधा मुकाबला प्रतीत होता है। प्रशांत किशोर की दावेदारी इस चुनाव को और भी रोचक बना रही है। इसके अलावा, यह चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विपक्ष के नेता राहुल गांधी के बीच भी एक महत्वपूर्ण द्वंद्व है। यह लोकसभा चुनाव के बाद का पहला चुनाव है और संभवतः पूरे देश में विधानसभा का एकमात्र चुनाव है, जिसमें दोनों नेता आमने-सामने हैं। बिहार में यह चुनाव इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि दोनों ने अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा को दांव पर लगाया है।
मोदी और राहुल का चुनावी अभियान
इस वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार का दौरा सात बार किया है, साथ ही कई बार वर्चुअल संवाद भी किया है। उन्होंने विभिन्न योजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया है। आमतौर पर राहुल गांधी राज्यों के चुनावों में इस तरह की सक्रियता नहीं दिखाते, लेकिन बिहार में उन्होंने आठ बार दौरा किया है और कई बार बिहार के नेताओं के साथ बैठकें की हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि राहुल गांधी इस बार चुनाव को दूर से संचालित कर रहे हैं। उन्होंने अपने करीबी सहयोगी कृष्णा अल्लावारू को प्रभारी बनाया है और अजय माकन को टिकटों की छंटनी का कार्य सौंपा है।
राहुल गांधी की चुनावी रणनीति
राहुल गांधी ने मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण के खिलाफ दो हफ्ते की यात्रा की, जिसमें तेजस्वी यादव और महागठबंधन के अन्य नेता उनके साथ थे। यात्रा के बाद पटना में एक सभा आयोजित की गई और वोटर अधिकार मार्च निकाला गया। इसके बाद, राहुल की पहल पर बिहार में कांग्रेस कार्य समिति की बैठक हुई, जो लगभग 85 वर्षों के बाद पहली बार बिहार में आयोजित की गई। महागठबंधन की ओर से राहुल गांधी ने नेतृत्व संभाला है, जबकि भाजपा और एनडीए की ओर से प्रधानमंत्री मोदी ने कमान संभाली है।
बिहार चुनाव का भविष्य
मोदी ने बिहार के विभिन्न प्रमंडलों में रैलियों का आयोजन किया, जिसमें सबसे कमजोर माने जाने वाले शाहाबाद क्षेत्र से शुरुआत की गई। उन्होंने मधुबनी में रैली की और फिर सीवान से लेकर पूर्णिया तक रैलियों का सिलसिला जारी रखा। मोदी ने हजारों करोड़ रुपए की योजनाओं का उद्घाटन किया, जिसके बाद भाजपा ने चुनाव को महिला, मोदी और मंदिर के नाम पर लड़ा जाने की बात कही। इन सभी तथ्यों के आधार पर, बिहार विधानसभा चुनाव को एक मिनी लोकसभा चुनाव के रूप में देखा जाना चाहिए।