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बिहार विधानसभा चुनाव: विपक्षी दलों के आरोपों का चुनाव आयोग ने दिया जवाब

बिहार विधानसभा चुनाव 2024 में दो चरणों में मतदान होगा, लेकिन चुनाव आयोग पर विपक्षी दलों ने गंभीर आरोप लगाए हैं। मतदाता सूची में 68 लाख नामों के हटने से विवाद बढ़ गया है। कांग्रेस और राजद ने चुनाव आयोग पर पक्षपात का आरोप लगाया है, जबकि आयोग ने सभी आरोपों को खारिज किया है। जानें इस चुनावी प्रक्रिया में क्या हो रहा है और किस तरह से यह राजनीतिक विवाद का विषय बन गया है।
 

बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा

बिहार विधानसभा चुनाव: बिहार विधानसभा चुनाव दो चरणों में आयोजित किए जाएंगे। मतदान 6 और 11 नवंबर को होगा, जबकि परिणाम 14 नवंबर को घोषित किए जाएंगे। मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार के कार्यभार ग्रहण करने के बाद, विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग पर मतदाताओं के नाम हटाने, डेटा एक्सेस पर रोक लगाने, सीसीटीवी फुटेज को रोकने और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने का आरोप लगाया है। चुनाव आयोग ने इन सभी आरोपों का मजबूती से खंडन किया है।


चुनाव आयोग पर उठे सवाल

यह चुनाव 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद का पहला बड़ा चुनावी आयोजन होगा और कुमार के नेतृत्व में पहला राज्य चुनाव भी है। हालांकि, जो आमतौर पर चुनाव से पहले की एक सामान्य घोषणा होती है, वह अब राजनीतिक विवाद का विषय बन गई है। विपक्षी नेता चुनाव आयोग को 'समझौतावादी' करार देते हैं, जबकि आयोग उन पर लोकतंत्र में विश्वास को कम करने का आरोप लगाता है।


मतदाता सूची में बदलाव

मतदाता सूची हटाने के आरोप:

इस विवाद का केंद्र बिहार की मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) है, जिसके कारण 68 लाख से अधिक नाम हटाए गए हैं। विपक्षी दलों का कहना है कि इस प्रक्रिया ने लाखों असली मतदाताओं के नाम हटा दिए हैं, जिससे महिलाओं, अल्पसंख्यकों और प्रवासी श्रमिकों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। कांग्रेस और राजद के नेताओं ने चुनाव आयोग पर 'शुद्धिकरण' के नाम पर मतदाता सूची में हेरफेर करने का आरोप लगाया है। राहुल गांधी ने इसे 'बिहार के लिए विशेष पैकेज' और 'वोट चोरी का नया रूप' बताया है।


चुनाव आयोग का स्पष्टीकरण

चुनाव आयोग ने इन आरोपों को 'निराधार और अपमानजनक' बताते हुए खारिज किया है। उन्होंने कहा कि डुप्लिकेट, पुरानी और माइग्रेटेड प्रविष्टियों को हटाना आवश्यक था। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा कि यह संशोधन पहले ही हो जाना चाहिए था, अन्यथा मतदान सूचियों की विश्वसनीयता को नुकसान होगा। आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामे में कहा कि ड्राफ्ट सूची से नाम हटाना स्थायी रूप से हटाना नहीं है और सभी राजनीतिक दलों के साथ विस्तृत डेटा साझा किया गया था।


वोट चोरी का मुद्दा

वोट चोरी का अभियान:

वोट चोरी का मुद्दा अब एक राष्ट्रीय अभियान का रूप ले चुका है। कांग्रेस का आरोप है कि चुनाव आयोग जानबूझकर डिजिटल मतदाता सूची तक पहुंच को प्रतिबंधित कर रहा है, जिससे राजनीतिक दल विलोपन और दोहराव की पुष्टि नहीं कर पा रहे हैं। गांधी ने कहा कि कांग्रेस कई राज्यों में 'सुनियोजित मतदाता दमन प्रयास' पर एक 'श्वेत पत्र' जारी करने की योजना बना रही है।


ईवीएम और सीसीटीवी पर सवाल

ईवीएम और सीसीटीवी विवाद:

विपक्ष ने ईवीएम की विश्वसनीयता और मतगणना में पारदर्शिता को लेकर अपने संदेहों को फिर से उजागर किया है। कांग्रेस, राजद और वामपंथी दलों ने आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग ईवीएम के कच्चे डेटा और मतगणना केंद्रों से सीसीटीवी फुटेज जारी करने से इनकार कर रहा है, जिससे परिणामों की स्वतंत्र पुष्टि में बाधा आ रही है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया है कि स्ट्रांग रूम और मतदान केंद्रों से सीसीटीवी फुटेज 45 दिनों के बाद क्यों हटा दिए जाते हैं।


सर्वोच्च न्यायालय की जांच

सर्वोच्च न्यायालय की जांच:

चुनाव आयोग की विश्वसनीयता को सर्वोच्च न्यायालय में परखा जा रहा है। अदालत एसआईआर प्रक्रिया और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव करने वाले हालिया कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। विपक्ष ने इस संशोधन को 'चुनाव आयोग पर राजनीतिक कब्ज़ा' बताया है और आरोप लगाया है कि यह संस्थागत स्वतंत्रता को कमजोर करता है।