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बिहार विधानसभा चुनाव: वोट डालने के लिए जरूरी दस्तावेजों की चिंता

बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, और चुनाव आयोग की नई गाइडलाइनों ने मतदाताओं के बीच चिंता बढ़ा दी है। दस्तावेजों की अनिवार्यता के कारण कई लोग वोट डालने में कठिनाई का सामना कर रहे हैं। विपक्ष ने आरोप लगाया है कि भाजपा के इशारे पर चुनाव आयोग गरीब और वंचित वर्ग के लोगों को परेशान कर रहा है। जानें इस मुद्दे पर चुनाव आयोग और विपक्ष की क्या प्रतिक्रिया है।
 

बिहार चुनाव की तैयारी

Bihar Chunav: बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, और इस बार चर्चा का विषय यह है कि लोग अपने वोट कैसे डालेंगे। चुनाव आयोग द्वारा जारी नई गाइडलाइनों के कारण लोगों में चिंता बढ़ गई है। इन गाइडलाइनों के अनुसार, मतदाताओं के पास कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज होना अनिवार्य है। इस वजह से कई लोग वोट डालने में कठिनाई का सामना कर रहे हैं, और बिहार के कई गांवों में लोग आवश्यक दस्तावेज बनवाने के लिए दौड़-भाग कर रहे हैं।


चुनाव आयोग के निर्देश

चुनाव आयोग ने 25 जुलाई तक मतदाता सूची के सत्यापन को पूरा करने का निर्देश दिया है। विधानसभा चुनाव के लिए बिहार में विशेष व्यवस्थाएं की जा रही हैं। इस समय सबसे अधिक परेशानी उन लोगों को हो रही है, जिनका नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं है। बिहार में ऐसे मतदाताओं की संख्या लगभग 2.93 करोड़ है। चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि इन लोगों के पास 11 आवश्यक दस्तावेजों में से कोई एक होना चाहिए, तभी वे वोट डाल सकेंगे।


विपक्ष की प्रतिक्रिया

इस मुद्दे पर विपक्ष ने आरोप लगाया है कि भाजपा के इशारे पर चुनाव आयोग गरीब, दलित, पिछड़े और वंचित वर्ग के लोगों को परेशान कर रहा है। चुनाव आयोग का कहना है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के तहत मतदाता सूची तैयार करने की जिम्मेदारी निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों (ईआरओ) की है, और आयोग केवल दिशा-निर्देश प्रदान कर सकता है। इस अधिनियम के अनुसार, अंतिम निर्णय ईआरओ पर निर्भर करता है कि वह किसी व्यक्ति का नाम मतदाता सूची में शामिल करने के लिए आवेदन स्वीकार करे या नहीं।