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बीकानेर-जम्मू तवी एक्सप्रेस में जवान की हत्या: क्या रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था पर उठेगा सवाल?

बीकानेर-जम्मू तवी साबरमती एक्सप्रेस में सेना के जवान जिगर कुमार की हत्या ने रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। रिपोर्टों के अनुसार, अधिकांश अटेंडेंट्स को सुरक्षा प्रशिक्षण नहीं दिया जाता, जिससे यात्रियों की सुरक्षा पर खतरा मंडरा रहा है। इस घटना ने न केवल एक जवान की जान ली, बल्कि रेलवे के सुरक्षा ढांचे की खामियों को भी उजागर किया है। क्या रेलवे अब इस मामले से सबक लेकर सुधार करेगा? जानें पूरी कहानी में।
 

राजस्थान में एक गंभीर घटना


राजस्थान : बीकानेर-जम्मू तवी साबरमती एक्सप्रेस में सेना के जवान जिगर कुमार की हत्या ने एक नया मोड़ ले लिया है। पहले इसे एक साधारण विवाद समझा गया, लेकिन अब यह मामला रेलवे की सुरक्षा प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़ा कर रहा है। रिपोर्टों के अनुसार, भारतीय रेलवे के 73 प्रतिशत अटेंडेंट्स को सुरक्षा प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है। इसका मतलब है कि जो लोग यात्रियों की सुरक्षा और सुविधा के लिए जिम्मेदार हैं, वे खुद सुरक्षा नियमों से अनभिज्ञ हैं। जिगर की हत्या अब केवल एक घटना नहीं, बल्कि सिस्टम की खामियों का प्रतीक बन चुकी है।


क्या रेलवे में सुरक्षा का कोई महत्व है?

भारत में प्रतिदिन करोड़ों लोग ट्रेन से यात्रा करते हैं। लेकिन बीकानेर एक्सप्रेस जैसी घटनाएं यह दर्शाती हैं कि यात्रियों की सुरक्षा कितनी असुरक्षित है। रेलवे में अटेंडेंट्स की भर्ती के बाद उनसे सुरक्षा प्रशिक्षण की अपेक्षा की जाती है, लेकिन वास्तविकता में यह केवल कागजों तक सीमित है। रिपोर्टों से पता चलता है कि कई अटेंडेंट्स को आपात स्थिति में क्या करना चाहिए, इसकी जानकारी नहीं होती। यही वह गलती है जिसने जिगर जैसे जवान की जान ले ली।


क्या आरोपी अकेला है या पूरी व्यवस्था दोषी?

आरोपी जुबेर मेमन को गिरफ्तार किया जा चुका है, लेकिन सवाल यह है कि गलती केवल उसकी थी या पूरी व्यवस्था की। रेलवे में स्टाफ की मानसिक स्वास्थ्य जांच, आक्रामकता प्रबंधन और यात्रियों के साथ संवाद की ट्रेनिंग लगभग न के बराबर है। जिगर कुमार ने केवल एक चादर मांगी थी, और यही मांग उसकी मौत का कारण बन गई। यदि स्टाफ को तनावपूर्ण स्थितियों को संभालने की ट्रेनिंग दी गई होती, तो शायद यह बहस हत्या में नहीं बदलती।


क्या रेलवे ने कुछ सीखा है?

घटना के बाद रेलवे ने जांच का आदेश दिया है, लेकिन आंतरिक सुधार की कोई चर्चा नहीं हो रही है। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्वीकार किया कि यह घटना दर्शाती है कि स्टाफ की ट्रेनिंग में बड़े बदलाव की आवश्यकता है। रेलवे बोर्ड अब एक नए सुरक्षा ऑडिट की योजना बना रहा है, जिसमें सभी ट्रेनों के अटेंडेंट्स और सफाई स्टाफ की पृष्ठभूमि की जांच शामिल होगी। यह पहल भले ही देर से हो रही है, लेकिन यह आवश्यक है।


क्या यात्रियों की जान की कोई कीमत नहीं है?

ट्रेन में यात्रा करने वाला हर यात्री यह मानता है कि रेलवे उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करेगा। लेकिन बीकानेर एक्सप्रेस का यह मामला उस विश्वास को तोड़ देता है। यात्रियों को अब डर है कि उनके आस-पास काम करने वाला कोई भी कर्मचारी कब हिंसक हो जाए, इसका कोई अंदाजा नहीं। सोशल मीडिया पर लोग सवाल उठा रहे हैं- अगर देश का जवान ट्रेन में सुरक्षित नहीं है, तो आम आदमी का क्या?


क्या अब मिलेगा इंसाफ?

जिगर कुमार का परिवार अभी भी न्याय की प्रतीक्षा कर रहा है। उनके पिता ने कहा, "हमारा बेटा देश की रक्षा कर रहा था, लेकिन देश उसके लिए कुछ नहीं कर सका।" यह बयान किसी भी इंसान का दिल हिला सकता है। परिवार चाहता है कि रेलवे इस मामले को 'एक और केस' न समझे, बल्कि इससे सबक लेकर अपने सुरक्षा ढांचे में बदलाव करे। अदालत में मामला चल रहा है और अब सभी की नजरें इस पर हैं कि न्याय कब मिलता है।


क्या अब रेलवे का चेहरा बदलेगा?

बीकानेर एक्सप्रेस का यह मामला केवल एक हत्या नहीं, बल्कि भारतीय रेलवे की आत्मा पर एक दाग है। अब मंत्रालय पर दबाव है कि वह सुरक्षा व्यवस्था को कागज से निकालकर ट्रेन के हर कोच तक पहुंचाए। यदि रेलवे ने यह अवसर गंवा दिया, तो यह खून का दाग कभी नहीं धुलेगा। देश को अब ऐसे सिस्टम की आवश्यकता है जो हर यात्री को यह विश्वास दिला सके कि उनकी यात्रा केवल मंजिल तक नहीं, बल्कि सुरक्षित भी होगी।