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बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: बीसीसीआई को कोच्चि टस्कर्स को 538 करोड़ रुपये देने होंगे

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को बॉम्बे हाईकोर्ट से एक बड़ा झटका लगा है, जहां कोर्ट ने कोच्चि टस्कर्स के पक्ष में 538 करोड़ रुपये के मध्यस्थता पुरस्कार को बरकरार रखा। यह मामला तब शुरू हुआ जब बीसीसीआई ने कोच्चि टस्कर्स की फ्रेंचाइजी को समाप्त कर दिया था। कोर्ट ने बीसीसीआई की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि उनके पास विवाद की जांच करने का अधिकार नहीं है। जानें इस मामले की पूरी कहानी और कोर्ट के निर्णय के पीछे के कारण।
 

बीसीसीआई को झटका

बीसीसीआई मध्यस्थता पुरस्कार मामला: भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को बॉम्बे हाईकोर्ट से एक महत्वपूर्ण झटका लगा है। कोर्ट ने आईपीएल से प्रतिबंधित फ्रेंचाइजी कोच्चि टस्कर्स के पक्ष में निर्णय सुनाया है और 538 करोड़ रुपये के मध्यस्थता फैसले को बरकरार रखा है। जस्टिस आरआई चागला ने बीसीसीआई की याचिका को खारिज कर दिया है, जिसके चलते बोर्ड को कोच्चि टस्कर्स के मालिकों को 538 करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा।


कोच्चि टस्कर्स का आईपीएल सफर

कोच्चि टस्कर्स केरल ने 2011 में इंडियन प्रीमियर लीग में अपनी शुरुआत की थी, लेकिन यह टीम केवल एक वर्ष तक ही खेल सकी। पहले इस टीम का स्वामित्व रेंदेवू स्पोर्ट्स वर्ल्ड (आरएसडब्ल्यू) के पास था, लेकिन बाद में कोच्चि क्रिकेट प्राइवेट लिमिटेड ने इसका संचालन किया। बीसीसीआई ने समझौते के उल्लंघन का हवाला देते हुए कोच्चि टस्कर्स की फ्रेंचाइजी को समाप्त कर दिया।


मामले की प्रगति

कैसे आगे बढ़ा मामला?

फ्रेंचाइजी को समाप्त करने का मुख्य कारण यह था कि कोच्चि टस्कर्स के मालिकों को 26 मार्च 2011 तक गारंटी राशि जमा करनी थी। बीसीसीआई ने इस गारंटी के लिए 6 महीने तक इंतजार किया, लेकिन उन्हें 156 करोड़ रुपये नहीं मिले।

आरएसडब्ल्यू और कोच्चि टस्कर्स प्राइवेट लिमिटेड ने बीसीसीआई के निर्णय के खिलाफ मध्यस्थता का सहारा लिया। ट्रिब्यूनल कोर्ट ने 2015 में फैसला सुनाया कि बीसीसीआई ने गलत तरीके से गारंटी राशि एकत्र की, जिससे आरएसडब्ल्यू को 153 करोड़ और केसीपीएल को 384 करोड़ का नुकसान हुआ। ब्याज और कानूनी खर्च सहित यह राशि 538 करोड़ रुपये बन गई।


बॉम्बे हाईकोर्ट का निर्णय

फैसला सुनाते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 के तहत इस कोर्ट का अधिकार क्षेत्र बहुत सीमित है। बीसीसीआई का विवाद की जांच करने का प्रयास धारा 34 के आधार से परे है। कोर्ट ने कहा कि सामने आए साक्ष्यों पर बीसीसीआई की आपत्ति को मध्यस्थता को चुनौती देने का आधार नहीं माना जा सकता।