भगत सिंह जयंती: शहीद-ए-आजम की प्रेरणादायक कहानी
भगत सिंह जयंती: शहीद-ए-आजम का योगदान
भगत सिंह जयंती: 27 सितंबर का दिन भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसी दिन 1907 में पंजाब के बंगा गांव में जन्मे भगत सिंह ने युवा अवस्था में ही देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। शहीद-ए-आजम भगत सिंह का नाम सुनते ही हर भारतीय के मन में देशभक्ति का जज्बा जाग उठता है।
स्कूलों में भगत सिंह जयंती के अवसर पर निबंध लिखने के लिए कहा जाता है। आज हम आपको एक सरल और प्रेरणादायक निबंध प्रस्तुत करेंगे, जो न केवल आपके स्कूल में अच्छे अंक दिलाएगा, बल्कि आपके अंदर साहस और देशप्रेम की भावना भी जगाएगा।
भगत सिंह की क्रांतिकारी यात्रा
भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को हुआ था। बचपन से ही उनके दिल में देशभक्ति की ज्वाला जल रही थी। उन्होंने ब्रिटिश शासन से भारत को मुक्त कराने के लिए कठिन संघर्ष किया।
जेल में रहते हुए भी उन्होंने भूख हड़ताल की और अपने विचारों से युवाओं को प्रेरित किया। 23 मार्च 1931 को, केवल 23 वर्ष की आयु में, उन्हें फांसी दी गई, लेकिन उनकी शहादत ने लाखों लोगों में क्रांति की चिंगारी जला दी।
शहादत का अमर संदेश
भगत सिंह ने कम उम्र में ही क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया था। लाला लाजपत राय की हत्या का प्रतिशोध लेने के लिए उन्होंने साहसिक कदम उठाए।
जेल में रहते हुए भी उन्होंने अपने लेखों और विचारों के माध्यम से युवाओं को जागरूक किया। उनकी शहादत हमें यह सिखाती है कि देश के लिए कुछ करना सबसे बड़ा सम्मान है। उनका नारा “इंकलाब जिंदाबाद” आज भी हर दिल में गूंजता है, जो हमें क्रांति और बदलाव का महत्व बताता है।
देशभक्ति का जुनून
भगत सिंह ने ब्रिटिश अन्याय को देखकर कम उम्र में ही क्रांति का मार्ग चुना। उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज में पढ़ाई की और साथ ही क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया।
1928 में लाला लाजपत राय की हत्या के बाद उन्होंने इसका प्रतिशोध लेने के लिए साहसिक कदम उठाए। जेल में रहते हुए भी उन्होंने भूख हड़ताल की और देश के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी। उनकी शहादत ने हर भारतीय को प्रेरित किया।
जब ब्रिटिश हुकूमत कांप उठी
लाहौर के नेशनल कॉलेज में पढ़ाई के दौरान भगत सिंह ने क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना शुरू किया। उन्होंने बागपत के सिसाना गांव में क्रांतिकारी विमल प्रसाद जैन के साथ मिलकर 3 अप्रैल 1929 को केंद्रीय विधानसभा में बम फेंकने की योजना बनाई।
भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने ब्रिटिश हुकूमत को चेतावनी देने के लिए विधानसभा में बम फेंका। इस घटना का उद्देश्य किसी की जान लेना नहीं, बल्कि अंग्रेजों को उनके अत्याचारों के खिलाफ चेतावनी देना था।