भारत और चीन का नया भुगतान ढांचा: क्या अमेरिका की शक्ति को मिलेगी चुनौती?
भारत-चीन सहयोग का नया अध्याय
India China New Payment System: अमेरिका की हालिया टैरिफ नीतियों ने वैश्विक आर्थिक संतुलन में हलचल पैदा कर दी है। इसका प्रभाव एशिया के प्रमुख देशों की रणनीतियों में स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है। हाल ही में चीन में आयोजित एससीओ शिखर सम्मेलन में भारत और चीन के बीच सहयोग की नई दिशा सामने आई। इस सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए, जिनमें सबसे प्रमुख था व्यापार के लिए डॉलर के स्थान पर एक वैकल्पिक भुगतान प्रणाली विकसित करने पर सहमति।
भू-अर्थशास्त्र में बदलाव
विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम अमेरिका के प्रभाव को सीधी चुनौती देने वाला है। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मत्तेओ माज्जियोरी के अनुसार, बड़ी शक्तियां अब अपने व्यापार और वित्तीय संबंधों का उपयोग राजनीतिक हथियार के रूप में कर रही हैं। यही कारण है कि भारत और चीन मिलकर एक नया भुगतान ढांचा विकसित करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
अमेरिका का वित्तीय दबदबा
माज्जियोरी ने बताया कि भू-अर्थशास्त्र का तात्पर्य है कि बड़ी अर्थव्यवस्थाएं अपने व्यापार और वित्तीय संबंधों का उपयोग शक्ति प्रदर्शन के लिए करती हैं। उदाहरण के लिए, चीन का दुर्लभ खनिजों पर नियंत्रण और अमेरिका का वैश्विक वित्तीय प्रणाली पर वर्चस्व। उन्होंने कहा कि निर्यात नियंत्रण, टैरिफ और आर्थिक प्रतिबंध अब केवल नीतियां नहीं रह गई हैं, बल्कि ये बड़े देशों के लिए हथियार बन चुके हैं।
भारत की बढ़ती भूमिका
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अब भू-अर्थशास्त्र का एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन चुका है। रूस से तेल आयात और डिजिटल भुगतान प्रणाली (UPI) का विकास भारत की प्रमुख उपलब्धियां हैं। माज्जियोरी ने कहा, "भारत का भुगतान तंत्र अब पड़ोसी देशों में भी फैल रहा है, जो उन देशों के लिए आकर्षक होगा जिन्हें पश्चिमी तंत्र से बाहर रखा गया है।" उन्होंने यह भी कहा कि भारत को वैश्विक शक्ति बनने के लिए सेमीकंडक्टर जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में अपनी क्षमता को विकसित करना होगा।
अमेरिका के लिए चेतावनी
माज्जियोरी ने चेतावनी दी कि डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल की टैरिफ नीतियों ने मौजूदा वैश्विक व्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। अमेरिका ने विभिन्न देशों से डील कर रियायतें तो लीं, लेकिन बाकी दुनिया सामूहिक प्रतिक्रिया देने में असफल रही। उन्होंने कहा, "यदि कोई वैकल्पिक प्रणाली केवल 10% लेन-देन भी संभालने लगे, तो छोटे देशों के लिए वही पर्याप्त विकल्प होगा और अमेरिका की शक्ति को गंभीर झटका लगेगा।"