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भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंधों में नई शुरुआत

भारत और चीन ने अपने लंबे समय से ठप पड़े सीमा व्यापार को फिर से शुरू करने का निर्णय लिया है। यह कदम अमेरिका की नीतियों का सामना करने के लिए उठाया गया है। दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध हजारों साल पुराने हैं और अब नई सहमति के तहत दुर्लभ खनिजों और उर्वरकों की आपूर्ति में तेजी आएगी। इस व्यापार बहाली से दोनों देशों को हर साल 5-6 अरब डॉलर का लाभ होने की उम्मीद है। जानिए इस समझौते के पीछे की पूरी कहानी और इसके संभावित प्रभाव।
 

दोनों देशों ने अमेरिका की नीतियों का सामना करने के लिए बनाई योजना


Business News Hindi : अमेरिका द्वारा अन्य देशों पर लगाए गए टैरिफ के चलते वैश्विक व्यापार में बदलाव आ रहा है। कई देश अब अमेरिका के बजाय अन्य देशों के साथ व्यापार पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। भारत भी उन देशों में शामिल है जो अमेरिकी टैरिफ से बचने के लिए नए विकल्पों की तलाश कर रहा है।


हाल ही में भारत ने ब्रिटेन और कुछ अन्य देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, और अब भारत और चीन के बीच लंबे समय से रुका हुआ सीमा व्यापार फिर से शुरू होने जा रहा है। एशियन डेवलपमेंट बैंक और विश्व बैंक के अनुसार, इस व्यापार बहाली से दोनों देशों को प्रारंभिक चरण में हर साल 5-6 अरब डॉलर का लाभ होने की उम्मीद है।


दुर्लभ खनिजों और उर्वरक की आपूर्ति में तेजी

नई सहमति के अनुसार, न केवल हिमालयी दर्रों से पारंपरिक व्यापार को गति मिलेगी, बल्कि दुर्लभ खनिजों और उर्वरकों की आपूर्ति की आपसी आवश्यकताएं भी पूरी की जाएंगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम अमेरिका की संरक्षणवादी नीतियों के बीच भारत को एक महत्वपूर्ण राहत प्रदान करेगा।


भारत-चीन व्यापारिक रिश्ते का ऐतिहासिक महत्व

भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंध हजारों साल पुराने हैं, जो सिल्क रूट और हिमालयी दर्रों के माध्यम से सदियों तक चलते रहे हैं। नाथू ला दर्रा (सिक्किम) 1962 के युद्ध के बाद बंद हो गया था, लेकिन 2006 में इसे फिर से खोला गया। यहां कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक्स और उपभोक्ता वस्तुओं का व्यापार होता है। लिपुलेख दर्रा उत्तराखंड में भी इस व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।


व्यापार के लिए प्राथमिक मार्ग

समझौते के तहत शिपकी ला दर्रा, नाथू ला दर्रा और अरुणाचल प्रदेश के बोमडिला मार्ग को प्राथमिकता दी जाएगी। भारतीय विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चीन ने दुर्लभ धातुओं की आपूर्ति का आश्वासन दिया है, जो भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा और ऊर्जा क्षेत्रों के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। भारत इसके बदले चीन को फॉस्फेट और पोटाश आधारित उर्वरकों की आपूर्ति करेगा। भारतीय उद्योग परिसंघ के मुख्य अर्थशास्त्री अरुण चतुर्वेदी ने कहा कि यह समझौता भारत की विनिर्माण क्षमता को मजबूत करेगा और चीन की खाद्य सुरक्षा रणनीति में योगदान देगा।