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भारत का अफगानिस्तान पर संयुक्त राष्ट्र महासभा में रुख

भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अफगानिस्तान पर पेश किए गए मसौदा प्रस्ताव में भाग नहीं लिया और अपनी चिंताओं को व्यक्त किया। राजदूत पार्वथानेनी हरीश ने कहा कि पारंपरिक तरीकों से समाधान की उम्मीद करना अफगान लोगों के लिए अपेक्षित परिणाम नहीं ला सकता। भारत ने तालिबान के शासन और सुरक्षा नीति पर अपने विचार साझा किए और क्षेत्रीय सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया। इसके साथ ही, भारत ने अफगानिस्तान में मानवीय सहायता के प्रयासों की जानकारी भी दी, जिसमें छात्रों के लिए छात्रवृत्तियों का प्रावधान शामिल है।
 

भारत की चिंता और प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया

भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में अफगानिस्तान पर प्रस्तुत मसौदा प्रस्ताव में भाग नहीं लिया और अपनी चिंताओं को व्यक्त किया। भारत का मानना है कि पारंपरिक तरीकों से समाधान की उम्मीद करना अफगान लोगों के लिए अपेक्षित परिणाम नहीं ला सकता। भारत ने तालिबान के शासन और सुरक्षा नीति पर अपने विचार साझा किए।


सोमवार को 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा ने जर्मनी द्वारा पेश किए गए 'अफगानिस्तान की स्थिति' पर मसौदा प्रस्ताव को मंजूरी दी। इस प्रस्ताव के पक्ष में 116 वोट पड़े, जबकि दो देशों ने इसका विरोध किया और 12 देशों ने मतदान से परहेज किया, जिसमें भारत भी शामिल था।


भारत के स्थायी प्रतिनिधि, राजदूत पार्वथानेनी हरीश ने स्पष्ट किया कि संघर्ष के बाद के समाधान के लिए संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, "दंडात्मक उपायों पर आधारित दृष्टिकोण से स्थिति में सुधार की संभावना कम है। हमें सकारात्मक व्यवहार को बढ़ावा देने और हानिकारक कृत्यों को रोकने की आवश्यकता है।"


उन्होंने यह भी बताया कि भारत अफगानिस्तान में सुरक्षा स्थिति पर नजर रखे हुए है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर काम करेगा ताकि आतंकवादी संगठन जैसे अलकायदा और आईएसआईएल अफगानिस्तान का उपयोग न कर सकें।


क्षेत्रीय सहयोग का महत्व

संयुक्त राष्ट्र के मसौदा प्रस्ताव में क्षेत्रीय सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया गया है, जिसमें अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों और क्षेत्रीय संगठनों के योगदान का महत्व बताया गया है। भारत, ईरान और तुर्की द्वारा अफगान छात्रों के लिए शैक्षिक अवसर प्रदान करने की सराहना की गई है।


यह प्रस्ताव अफगानिस्तान के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए क्षेत्रीय सहयोग की आवश्यकता को मान्यता देता है, ताकि स्थिरता और शांति स्थापित की जा सके।


मसौदा प्रस्ताव में तालिबान से इच्छुक पक्षों के साथ सहयोग करने के लिए तंत्र स्थापित करने का आग्रह किया गया है। अफगानिस्तान की भूमिका को मध्य और दक्षिण एशिया को जोड़ने वाले क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं में महत्वपूर्ण माना गया है।


भारत का मानवीय योगदान

भारत ने हमेशा अफगानिस्तान में विकास और मानवाधिकारों के क्षेत्र में अपनी भूमिका को प्राथमिकता दी है। राजदूत हरीश ने कहा, "हम स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा, शिक्षा, और खेल जैसे क्षेत्रों में अफगान लोगों की मदद करने के लिए संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।"


अगस्त 2021 में तालिबान के काबुल पर कब्जे के बाद से, भारत ने अफगानिस्तान को लगभग 50,000 मीट्रिक टन गेहूं, 330 मीट्रिक टन दवाइयाँ और 40,000 लीटर कीटनाशक भेजे हैं। इसके अलावा, भारत ने महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष कार्यक्रमों के लिए भी सहायता प्रदान की है।


भारत ने अफगान छात्रों के लिए 2023 से 2,000 स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के लिए छात्रवृत्तियां प्रदान करने की योजना भी शुरू की है, जिसमें 600 से अधिक लड़कियों और महिलाओं को शामिल किया गया है। यह भारत की अफगानिस्तान में शिक्षा के प्रति दीर्घकालिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है।