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भारत का चालू खाता सरप्लस: अमेरिका की टैरिफ नीतियों के बावजूद मजबूत स्थिति

भारत ने हाल ही में चालू खाता सरप्लस में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की है, जो अमेरिका की टैरिफ नीतियों के बावजूद हुआ है। भारतीय रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, चालू खाता सरप्लस 13.5 अरब डॉलर तक पहुंच गया है, जो पिछले वर्ष की तुलना में तीन गुना अधिक है। इस वृद्धि के पीछे सेवा क्षेत्र के निर्यात में तेजी और प्रवासी भारतीयों द्वारा भेजे गए धन में वृद्धि है। जानें इस आर्थिक सफलता के पीछे के कारण और विशेषज्ञों की भविष्यवाणी क्या है।
 

भारत का चालू खाता सरप्लस: एक नई आर्थिक कहानी

जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को "टैरिफ किंग" कहा था, तो शायद उन्होंने यह नहीं सोचा था कि भारत उनकी टैरिफ नीतियों के बावजूद व्यापार में मजबूती से उभरेगा। हाल ही में भारत का चालू खाता सरप्लस (Current Account Surplus) ने वैश्विक समुदाय को चौंका दिया है। जबकि अमेरिका भारत के निर्यात को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा था, भारत ने न केवल अपने निर्यात में वृद्धि की, बल्कि आयात को कम करके वैश्विक आर्थिक संकट के बीच अपनी स्थिति को मजबूत बनाए रखा।


चालू खाता सरप्लस का आंकड़ा

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी-मार्च 2025 की तिमाही में भारत ने 13.5 अरब डॉलर का चालू खाता सरप्लस दर्ज किया, जो देश की जीडीपी का 1.3% है। पिछले वर्ष इसी अवधि में यह आंकड़ा केवल 4.6 अरब डॉलर था, जो एक साल में तीन गुना वृद्धि को दर्शाता है। इस वृद्धि के पीछे मुख्य कारण सेवा क्षेत्र के निर्यात में तेजी और प्रवासी भारतीयों द्वारा भेजे गए धन में वृद्धि है।


निर्यात में वृद्धि और आयात में कमी

भारत की शुद्ध सेवा प्राप्तियां 2024-25 की चौथी तिमाही में बढ़कर 53.3 अरब डॉलर हो गईं, जो पिछले वर्ष 42.7 अरब डॉलर थीं। कंप्यूटर और व्यावसायिक सेवाओं जैसे क्षेत्रों में निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। इसके अलावा, प्रवासी भारतीयों द्वारा भेजा गया धन भी बढ़कर 33.9 अरब डॉलर हो गया है।


चीन की चिंता

भारत के आर्थिक प्रदर्शन में मजबूती से चीन भी चिंतित है, क्योंकि पहले विदेशी निवेश और फैक्ट्रियां चीन की ओर जाती थीं, अब वे भारत की ओर बढ़ रही हैं। भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का नया केंद्र बनने की दिशा में अग्रसर है, जो चीन के लिए एक रणनीतिक चुनौती बन सकता है।


FDI और FPI में उतार-चढ़ाव

हालांकि, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) में कुछ गिरावट देखी गई है। मार्च तिमाही में FDI केवल 40 करोड़ डॉलर रहा, जबकि पिछले वर्ष यह 2.3 अरब डॉलर था। वहीं, FPI की निकासी 5.9 अरब डॉलर रही। इसके बावजूद, भारत का कुल भुगतान संतुलन मजबूत बना हुआ है।


विशेषज्ञों की राय

रेटिंग एजेंसी ICRA की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर का कहना है कि चौथी तिमाही में चालू खाता सरप्लस सीजनल रूप से अनुमानित था, लेकिन इसका आकार अपेक्षा से बड़ा रहा। हालांकि, वित्त वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही में व्यापार घाटा बढ़ सकता है और सेवा व्यापार अधिशेष में कमी आ सकती है।