भारत की कूटनीति: बांग्लादेश और नेपाल को स्पष्ट संदेश
हाल ही में, भारत ने बांग्लादेश और नेपाल को स्पष्ट संदेश दिया है कि वह अपनी राष्ट्रीय हितों की रक्षा करेगा। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत को अपनी आंतरिक राजनीति में शामिल करने का प्रयास किया, जबकि नेपाल ने लिपुलेख पर अपने दावे को दोहराया। भारत ने दोनों मामलों में सख्त लेकिन कूटनीतिक प्रतिक्रिया दी, यह दर्शाते हुए कि वह अपने पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध चाहता है, लेकिन किसी भी प्रकार के दबाव को स्वीकार नहीं करेगा। जानें इस कूटनीति के पीछे की कहानी और इसके दक्षिण एशिया की राजनीति पर प्रभाव।
Aug 21, 2025, 11:36 IST
दक्षिण एशिया की भू-राजनीति में नया मोड़
दक्षिण एशिया की भू-राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया है, जब बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने अवामी लीग की गतिविधियों का मुद्दा उठाकर भारत को अपनी आंतरिक राजनीति में शामिल करने का प्रयास किया। इसी बीच, नेपाल ने लिपुलेख पर अपने दावे को दोहराते हुए भारत-चीन व्यापारिक समझौते पर सवाल उठाए। भारत ने दोनों मामलों में तुरंत और प्रभावी प्रतिक्रिया दी। बांग्लादेश को याद दिलाया गया कि उसकी ज़मीन किसी अन्य देश की राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र नहीं बन सकती। नेपाल को भी यह स्पष्ट किया गया कि लिपुलेख से व्यापार 1954 से चल रहा है और बिना ऐतिहासिक तथ्यों के दावे स्थायी नहीं हो सकते।
भारत का सख्त लेकिन कूटनीतिक जवाब
भारत के इस सख्त जवाब से कई संदेश गए हैं। यह दर्शाता है कि भारत अपने पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध चाहता है, लेकिन राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देता है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार को यह संकेत दिया गया है कि भारत उसकी आंतरिक राजनीतिक संघर्ष का हिस्सा नहीं बनेगा, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल करने पर ध्यान केंद्रित करेगा। नेपाल और चीन को यह संदेश दिया गया है कि भारत अपनी रणनीतिक सीमाओं और व्यापार मार्गों पर किसी भी दबाव को स्वीकार नहीं करेगा।
बांग्लादेश की मांग और भारत की प्रतिक्रिया
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत से अनुरोध किया था कि वह निषिद्ध बांग्लादेश अवामी लीग के कार्यालयों और गतिविधियों को दिल्ली और कोलकाता में बंद करे। बांग्लादेश ने इसे 'ढाका और उसके लोगों के खिलाफ सीधा अपमान' बताया। भारत ने स्पष्ट रूप से कहा कि उसकी भूमि का उपयोग किसी अन्य देश के खिलाफ राजनीतिक गतिविधियों के लिए नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही, भारत ने बांग्लादेश को याद दिलाया कि वह स्वतंत्र, निष्पक्ष और समावेशी चुनावों की जल्द आवश्यकता को समझता है।
नेपाल का लिपुलेख पर दावा
नेपाल ने लिपुलेख दर्रे के माध्यम से भारत-चीन व्यापार को फिर से शुरू करने पर आपत्ति जताई है। नेपाल का कहना है कि लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा उसकी भूमि हैं, जो 1816 की सुगौली संधि से प्रमाणित हैं। भारत ने उत्तर दिया कि लिपुलेख दर्रे से व्यापार 1954 से चल रहा है, जिसे कोविड और अन्य कारणों से रोका गया था। भारत ने कहा कि नेपाल के दावे ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं हैं और किसी भी प्रकार का 'एकतरफा कृत्रिम विस्तार' अस्वीकार्य है।
दक्षिण एशिया की राजनीति पर प्रभाव
इन दोनों घटनाओं का दक्षिण एशिया की राजनीति पर व्यापक प्रभाव पड़ने की संभावना है। भारत ने बिना किसी झुकाव के 'सख्त लेकिन कूटनीतिक' भाषा का उपयोग किया है, जिससे यह संदेश गया है कि भारत अपने पड़ोसियों की अनुचित मांगों के सामने झुकने वाला नहीं है। यह घटनाक्रम दर्शाता है कि भारत न केवल अपने हितों की रक्षा करने में दृढ़ है, बल्कि क्षेत्रीय राजनीति में एक निर्णायक शक्ति के रूप में उभर चुका है।