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भारत की तालिबान सरकार के साथ नई कूटनीतिक पहल

भारत ने अफगानिस्तान के संबंध में मास्को फॉर्मेट कंसल्टेशन में भाग लेकर तालिबान सरकार के साथ अपने संबंधों में एक नई दिशा अपनाई है। इस बैठक में रूस, चीन और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया। भारत की यात्रा के दौरान तालिबान के विदेश मंत्री को उच्च सम्मान देने की योजना है, जिसे कूटनीतिक हलकों में अप्रत्यक्ष मान्यता के रूप में देखा जा रहा है। जानें इस बदलाव के पीछे की वजहें और क्या इससे भारत के हित सधेंगे।
 

भारत की भागीदारी और तालिबान के साथ संबंध

अफगानिस्तान से संबंधित मास्को फॉर्मेट कंसल्टेशन में भारत की भागीदारी महत्वपूर्ण है, जहां उसने अमेरिका के खिलाफ एक स्पष्ट राय को स्वीकार किया। इस बैठक में रूस, चीन और पाकिस्तान के प्रतिनिधि भी शामिल थे।


सूत्रों के अनुसार, भारत की यात्रा के दौरान तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मोत्ताकी को वह सम्मान दिया जाएगा, जो किसी अन्य विदेश मंत्री को प्रोटोकॉल के तहत मिलता है। कूटनीतिक हलकों में इसे तालिबान सरकार को भारत की अप्रत्यक्ष मान्यता के रूप में देखा जा रहा है। इस यात्रा से पहले हुई एक घटना ने इस राय को और मजबूत किया है। यह ध्यान देने योग्य है कि मास्को फॉर्मेट कंसल्टेशन में भारत ने भाग लिया और अमेरिका के खिलाफ एक राय को स्वीकार किया।


बैठक में रूस, चीन और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों ने साझा बयान में कहा कि ‘अफगानिस्तान और उसके पड़ोसी देशों में सैन्य ढांचे की तैनाती की कोशिशें अस्वीकार्य हैं, क्योंकि इससे क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को नुकसान होगा।’ हाल ही में, अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अफगानिस्तान के बागराम एयरबेस को फिर से अमेरिकी नियंत्रण में लेने का इरादा जताया था। इस पर भारत की सहमति रूस, चीन और पाकिस्तान के साथ है। रूस ने तालिबान सरकार को मान्यता दे दी है, जबकि चीन और पाकिस्तान ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत अफगानिस्तान में अपने संबंध मजबूत किए हैं।


सितंबर 2021 में, काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को चेतावनी दी थी कि तालिबान को मान्यता देने में जल्दबाजी न की जाए। जबकि चीन और रूस ने इस मामले में लचीला रुख अपनाया। संभव है कि भारत सरकार ने महसूस किया हो कि उसके दुविधाग्रस्त रुख के कारण वह अफगानिस्तान में प्रभाव बनाने की दौड़ में पीछे रह गई है। बदलती वैश्विक परिस्थितियों का भी भारत के रुख पर असर पड़ सकता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या इस रुख परिवर्तन से भारत के हित वास्तव में सधेंगे?