भारत की नक्सलवाद और आतंकवाद के खिलाफ जंग: चुनौतियाँ और संभावनाएँ
नक्सलवाद के खिलाफ भारत की प्रगति
भारत नक्सलवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त कर रहा है। सुरक्षा बलों की निरंतर कार्रवाई के परिणामस्वरूप कई नक्सली कमांडर मारे जा चुके हैं। दंतेवाड़ा और झीरम घाटी जैसे प्रमुख हमलों के मास्टरमाइंड माडवी हिडमा को भी सुरक्षा बलों ने समाप्त कर दिया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नक्सलवाद को समाप्त करने के लिए मार्च 2026 तक की समय सीमा निर्धारित की है, और ऐसा प्रतीत होता है कि इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।
आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई की चुनौतियाँ
हालांकि, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में स्थिति अलग है। दिल्ली में लाल किले के पास हुए कार विस्फोट ने इस मुद्दे को फिर से प्रासंगिक बना दिया है। पिछले एक दशक से केंद्र सरकार का दावा है कि जम्मू कश्मीर के बाहर आतंकवादी हमले कम हो गए हैं। प्रधानमंत्री ने कहा है कि अब लावारिस वस्तुओं के बारे में चेतावनी नहीं दी जाती, लेकिन दिल्ली मेट्रो में यात्रा करने वाले यात्रियों को यह चेतावनी अक्सर सुनने को मिलती है।
आतंकवाद की जड़ें और खुफिया विफलताएँ
आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में खुफिया एजेंसियों की विफलता चिंता का विषय है। पुलवामा और पहलगाम कांड जैसे हमलों में खुफिया जानकारी की कमी ने सुरक्षा बलों को मुश्किल में डाल दिया है। हाल ही में दिल्ली में हुए विस्फोट में 13 लोगों की जान गई, और इस मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी कर रही है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ और भविष्य की दिशा
दिल्ली में हुए विस्फोट के बाद, जम्मू कश्मीर के नेताओं ने संदिग्धों के प्रति सहानुभूति व्यक्त की है। महबूबा मुफ्ती और फारूक अब्दुल्ला जैसे नेता यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या जम्मू कश्मीर के लोग अपने हालात के कारण आतंकवाद की ओर बढ़ रहे हैं। यह स्थिति दर्शाती है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है, बल्कि यह एक निरंतर संघर्ष बन गई है।