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भारत की रक्षा क्षमता में बड़ा इजाफा: 1 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाओं को मिली मंजूरी

भारत के रक्षा मंत्रालय ने 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक की 10 प्रमुख परियोजनाओं को मंजूरी दी है, जिसमें युद्धपोत, मिसाइल सिस्टम और निगरानी विमान शामिल हैं। यह कदम भारतीय सेनाओं की ताकत को बढ़ाने के लिए उठाया गया है। इनमें से 12 माइन काउंटरमेजर वेसल्स की खरीद और क्विक रिएक्शन मिसाइल सिस्टम का विकास शामिल है। ये परियोजनाएं भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर करेंगी और दुश्मनों को एक सख्त संदेश भेजेंगी। जानें इन परियोजनाओं के पीछे की रणनीति और महत्व के बारे में।
 

रक्षा मंत्रालय की नई पहल

राष्ट्रीय समाचार: रक्षा मंत्रालय ने 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक की 10 महत्वपूर्ण परियोजनाओं को स्वीकृति दी है, जिनमें युद्धपोत, मिसाइल सिस्टम और निगरानी विमान शामिल हैं। ये सभी परियोजनाएं भारतीय सेनाओं की ताकत को बढ़ाने में सहायक होंगी। भारत ने अब तक की सबसे बड़ी युद्धपोत खरीद को मंजूरी दी है, जिसमें 44,000 करोड़ रुपये 12 माइन काउंटरमेजर वेसल्स (MCMVs) के लिए आवंटित किए गए हैं। ये जहाज़ पानी के नीचे बारूदी सुरंगों का पता लगाने और उन्हें निष्क्रिय करने में सक्षम होंगे, जिससे नौसेना की सुरक्षा में वृद्धि होगी। प्रत्येक जहाज का वजन लगभग 1,000 टन होगा और इन्हें अगले दस वर्षों में तैयार किया जाएगा। वर्तमान में भारतीय नौसेना के पास विशेष माइनस्वीपिंग जहाज नहीं हैं, इसलिए यह योजना अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है। हिंद महासागर में चीन और पाकिस्तान की गतिविधियों के संदर्भ में यह निर्णय रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। अब पोर्ट और समुद्री रास्तों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता बन गई है।


मिसाइल प्रणाली से हवाई सुरक्षा

मिसाइल प्रणाली से हवाई कवच

सरकार ने 36,000 करोड़ रुपये की लागत से क्विक रिएक्शन सरफेस-टू-एयर मिसाइल (QRSAM) सिस्टम खरीदने की मंजूरी दी है। ये सिस्टम दुश्मन के ड्रोन, हेलीकॉप्टर और विमानों को 30 किलोमीटर की दूरी से निशाना बना सकते हैं। सेना की तीन रेजीमेंट्स और वायुसेना के तीन स्क्वाड्रन में इनकी तैनाती की जाएगी। DRDO द्वारा विकसित यह प्रणाली ऑपरेशन सिंदूर के दौरान दुश्मन की हवाई ताकत से लड़ने में प्रभावी साबित हुई थी। सेना को कुल 11 QRSAM रेजीमेंट की आवश्यकता है, जिससे भारत की हवाई सुरक्षा को मजबूती मिलेगी।


वायुसेना के लिए नई निगरानी तकनीक

वायुसेना को नई निगरानी आंखें

भारतीय वायुसेना के लिए 10,000 करोड़ रुपये की लागत से तीन ISTAR (इंटेलिजेंस, सर्विलांस, टारगेट एक्विजिशन एंड रिकॉनिसेंस) विमान खरीदे जाएंगे। इनमें DRDO के सेंसर, सिंथेटिक एपर्चर रडार और ऑप्टिकल इमेजिंग सिस्टम शामिल होंगे। ये विमान दुश्मन की गतिविधियों की वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करेंगे और हमले में सहायता करेंगे। इससे युद्ध क्षेत्र की स्थिति का बेहतर विश्लेषण संभव होगा। ये भारतीय वायुसेना को रणनीतिक बढ़त दिलाने में सहायक होंगे।


समुद्री सुरक्षा में वृद्धि

समुद्र के नीचे भी तैयारी

इन परियोजनाओं के तहत पनडुब्बी रोधी क्षमताओं को भी बढ़ाया जाएगा। इसके लिए नई सोनार तकनीक, टॉरपीडो और अंडरवॉटर ड्रोन तैनात किए जाएंगे। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीनी पनडुब्बियों की बढ़ती मौजूदगी से निपटने के लिए यह कदम महत्वपूर्ण है। समुद्र के नीचे की गतिविधियों पर नजर रखना अब भारत की प्राथमिकता बन गई है। इससे नौसेना को बहुस्तरीय सुरक्षा प्राप्त होगी।


स्वदेशी निर्माण को बढ़ावा

स्वदेशी रक्षा निर्माण को बढ़ावा

इन परियोजनाओं के माध्यम से 'मेक इन इंडिया' को भी बढ़ावा मिलेगा। DRDO और भारतीय निजी रक्षा कंपनियों को इन निर्माण कार्यों में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। इससे भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त होगी और रोजगार के अवसर भी उत्पन्न होंगे। सरकार का लक्ष्य है कि अगले पांच वर्षों में हथियारों के आयात को कम किया जाए। यह भारत को रक्षा टेक्नोलॉजी का वैश्विक नेता बना सकता है।


ऑपरेशन सिंदूर से मिली सीख

ऑपरेशन सिंदूर से सीख

सूत्रों के अनुसार, ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद इन परियोजनाओं को तेजी से मंजूरी दी गई है। उस मिशन में ड्रोन और मिसाइल हमलों के बीच भारत की सीमित तैयारियों का खुलासा हुआ था। रक्षा योजनाकारों ने इन कमियों की पहचान की और उन्हें दूर करने के लिए ये सौदे किए गए। यह केवल खरीद नहीं, बल्कि रणनीति में बदलाव का संकेत है।


दुश्मनों को सख्त संदेश

दुश्मनों को भेजा सख्त संदेश

चीन और पाकिस्तान जैसे विरोधियों को यह निवेश भारत की गंभीरता का स्पष्ट संकेत देता है। यह वैश्विक साझेदारों को भी संदेश देता है कि भारत अब रक्षात्मक नहीं, बल्कि आक्रामक रणनीति अपना रहा है। थल, वायु, जल और समुद्र के नीचे तक अब भारत की पकड़ मजबूत हो रही है। यह नई रणनीतिक सोच की शुरुआत है।