भारत की विदेश नीति: ठोस राष्ट्र हितों की ओर बढ़ता कदम
भारत की नई विदेश नीति
एक राष्ट्र जो अपने हितों को भुला देता है, वह केवल इतिहास की कहानियों में रह जाता है। इसी संदर्भ में, भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने हाल ही में एक कार्यक्रम में यह स्पष्ट किया कि भारत अब किसी भी बाहरी दबाव के अधीन नहीं होगा। उन्होंने बताया कि भारत की विदेश नीति अब नेहरू युग की भावनाओं से हटकर ठोस राष्ट्रीय हितों पर आधारित है।
जयशंकर ने बिना किसी का नाम लिए पाकिस्तान की आलोचना की और कहा कि भारत के पड़ोसी भिन्न हैं, कुछ अच्छे हैं और कुछ कम अच्छे। उन्होंने यह भी कहा कि हाइफनेशन अक्सर उन पड़ोसियों के साथ होता है जो अच्छे नहीं होते।
उन्होंने यह स्पष्ट किया कि जब हम डिहाइफनेशन की बात करते हैं, तो इसका अर्थ है कि हम चाहते हैं कि अन्य देश भारत के बारे में निर्णय लेते समय किसी एक संबंध को प्राथमिकता न दें। एक कठिन पड़ोसी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, चाहे वह कितना भी अप्रिय क्यों न हो।
जयशंकर ने कहा कि हमें खुद को इतना प्रभावशाली बनाना होगा कि रिश्ते मुख्यतः हमारी क्षमताओं और योगदान पर आधारित हों।
जब श्रीलंका में आर्थिक संकट आया, तब भारत ने सहायता प्रदान की, जो आज भी मालदीव को मिल रही है। हाल के वर्षों में भारत के पड़ोस में कई राजनीतिक बदलाव आए हैं। पिछले महीने नेपाल में भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शनों के बाद प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को पद से हटा दिया गया।
पिछले साल बांग्लादेश में भी राजनीतिक उथल-पुथल देखी गई, जहां शेख हसीना की सरकार को हटाया गया। वहीं, मालदीव में हाल ही में मोहम्मद मुइज़्ज़ू को राष्ट्रपति चुना गया, जिन्होंने अपने चुनावी अभियान में "इंडिया आउट" का नारा दिया था, लेकिन अब संबंधों में सुधार हो रहा है।