भारत की विदेश नीति: मोदी का चीन दौरा और पुतिन का आगमन
राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव
Editorial | राकेश सिंह | वर्तमान समय में वैश्विक राजनीति में तेजी से बदलाव हो रहा है। हाल ही में, अमेरिका के राष्ट्रपति ने भारत पर 50 प्रतिशत तक टैरिफ लगाने का निर्णय लिया है, जिसका कारण भारत द्वारा रूस से तेल खरीदना है। इस बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चीन दौरे की खबरें आ रही हैं, जबकि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी भारत आने वाले हैं। इन घटनाओं का क्या अर्थ है? क्या भारत की कोई विशेष रणनीति है? आइए, इन सवालों पर चर्चा करते हैं।
ट्रम्प द्वारा लगाए गए टैरिफ की बात करें तो, उन्होंने अगस्त 2025 में पहले 25 प्रतिशत और फिर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाए। इसका कारण भारत का रूस से सस्ता तेल खरीदना है। अमेरिका ने रूस पर प्रतिबंध लगाए हैं और ट्रम्प चाहते हैं कि भारत भी इनका पालन करे। लेकिन भारत के लिए रूस से तेल खरीदना आवश्यक है, क्योंकि इससे महंगाई नियंत्रित रहती है। भारत सरकार ने इस पर विरोध जताया है और प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि हम अपनी स्वतंत्र नीति पर कायम रहेंगे।
अब मोदी के चीन दौरे की चर्चा करें। रिपोर्टों के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी 31 अगस्त से 1 सितंबर तक चीन जाएंगे। यह दौरा शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक के लिए है। मोदी का यह दौरा सात साल बाद हो रहा है, क्योंकि 2020 में गलवान घाटी में झड़प के बाद दोनों देशों के रिश्ते खराब हो गए थे। लेकिन अब दोनों देश फिर से बातचीत की दिशा में बढ़ रहे हैं।
पुतिन का भारत आगमन भी महत्वपूर्ण है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने कहा है कि पुतिन इस साल के अंत तक भारत आएंगे। उनका यह दौरा भारत-रूस संबंधों को और मजबूत करेगा। भारत-रूस की दोस्ती पुरानी है और पुतिन का आगमन इस दोस्ती को और गहरा करेगा।
भारत की रणनीति मल्टी-अलाइनमेंट है, जिसका अर्थ है कि हम अमेरिका, रूस और चीन के साथ संबंध बनाए रखेंगे। ट्रम्प के टैरिफ से अमेरिका-भारत संबंधों में तनाव बढ़ा है, लेकिन मोदी जानते हैं कि दुनिया बदल रही है। भारत ब्रिक्स और एससीओ जैसे संगठनों में सक्रिय है, जहां चीन और रूस महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
अंत में, ये घटनाएं दिखाती हैं कि दुनिया अब एकध्रुवीय नहीं है। ट्रम्प की नीतियों से कई देश नाराज हैं और अब एक बहुध्रुवीय विश्व की ओर बढ़ रहे हैं। भारत इस बदलाव में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।