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भारत को अमेरिका की व्यापार मांगों का सामना करना चाहिए

भारत को अमेरिका की व्यापार मांगों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें आयात शुल्कों में बदलाव की मांग की जा रही है। अमेरिकी वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने भारत पर आरोप लगाया है कि वह अमेरिका से मक्का खरीदने के लिए तैयार नहीं है। इस लेख में जानें कि कैसे ये मांगें भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती हैं और भारत को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार निर्णय लेने की आवश्यकता है।
 

भारत की व्यापार नीति पर अमेरिकी दबाव

भारत को व्यापार समझौतों की आवश्यकता है, और यदि आयात शुल्कों में कुछ बदलाव करना पड़े, तो इसके लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। लेकिन ट्रंप प्रशासन की अनुचित मांगों को पूरी तरह से नकारना चाहिए।


अमेरिकी वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने भारत पर एक नया आरोप लगाया है। उन्होंने यह तर्क दिया कि भारत, जो 140 करोड़ की जनसंख्या का दावा करता है, अमेरिका से मक्का खरीदने के लिए तैयार नहीं है। नरेंद्र मोदी सरकार, जो अन्य देशों की हर छोटी-छोटी आलोचना पर प्रतिक्रिया देती है, अमेरिका को जवाब देने से बचती है। इसलिए, यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह इस तर्क का उचित उत्तर देगी। लुटनिक को यह समझाना चाहिए कि कोई भी देश अपनी आवश्यकताओं के अनुसार चीजें खरीदता है, न कि किसी और की जरूरतों को पूरा करने के लिए। अमेरिका भी भारत या किसी अन्य देश से चीजें खरीदता है जब उसे ऐसा करना सस्ता लगता है।


अमेरिकी उद्योगपति अपने व्यवसायों को विकासशील देशों में ले गए हैं क्योंकि इससे उनका लाभ बढ़ा है। यदि अमेरिका के उद्योगों को नुकसान हुआ है, तो इसका खामियाजा अन्य देशों से वसूलना व्यापार के नियमों का उल्लंघन है। चाहे वह मक्का हो, सोयाबीन, पोल्ट्री या डेयरी उत्पाद, भारत महंगे दामों पर अमेरिका से इन्हें नहीं खरीद सकता, क्योंकि इससे केवल डोनाल्ड ट्रंप के समर्थक अमेरिकी कृषि और डेयरी क्षेत्र को लाभ होगा। भारत को अपनी बड़ी जनसंख्या के हितों की कीमत पर ऐसा नहीं करना चाहिए।


इसलिए, लुटनिक की यह धमकी कि इन वस्तुओं पर आयात शुल्क कम करना होगा, अन्यथा अमेरिका भारत के साथ व्यापार समझौता नहीं करेगा, को पूरी तरह से नकार दिया जाना चाहिए। निश्चित रूप से, व्यापार समझौता भारत के लिए भी आवश्यक है। यदि आयात शुल्कों में कुछ समायोजन करना पड़े, तो भारत सरकार को इसके लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। लेकिन ट्रंप प्रशासन ने व्यापार घाटे के मुद्दे को ही नहीं, बल्कि विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था को अमेरिकी हितों के अनुसार ढालने का प्रयास किया है। इसमें भू-राजनीतिक पहलू भी शामिल हैं। कोई भी जागरूक देश ऐसी अमेरिकी मांगों के आगे कैसे झुक सकता है?