भारत-चीन संबंधों में बदलाव: पाकिस्तान की नई वित्तीय रणनीति
एससीओ समिट में मोदी की उपस्थिति
हाल ही में, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एससीओ समिट में भाग लेने के लिए चीन का दौरा किया। इस दौरान, उनकी मुलाकात चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से हुई। दोनों देशों ने एक स्पष्ट संदेश दिया कि यदि कोई देश अपने आपको सुपरपावर समझता है और आंखें दिखाने की कोशिश करता है, तो भारत और चीन के पास विकल्प मौजूद हैं। भारत अपने उत्पादों के लिए नए बाजार खोज सकता है, जबकि चीन अपने सामान की खरीद और नए बाजारों के दरवाजे खोलने की कोशिश कर सकता है। इस संदर्भ में, अमेरिका की स्थिति पर सवाल उठाया गया। रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने इस संदेश को और स्पष्ट किया, जब एससीओ समिट में मोदी, जिनपिंग और पुतिन की हंसती हुई तस्वीर सामने आई। वहीं, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को इस दौरान अलग-थलग महसूस किया गया।
पाकिस्तान और चीन के रिश्तों में खटास
पाकिस्तान, जिसे चीन की कठपुतली माना जाता है, अब चीन से अपनी मदद की उम्मीदें कम कर रहा है। हाल के दिनों में, दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य नहीं दिख रहे हैं। पाकिस्तान ने एशियाई विकास बैंक (ADB) से अपने पुराने रेलवे नेटवर्क के उन्नयन के लिए 2 अरब डॉलर का ऋण मांगा है, जो कि चीन के बजाय एक नया कदम है।
एमएल1 परियोजना का महत्व
यह एमएल1 परियोजना, जो कभी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) की सबसे महत्वपूर्ण योजना मानी जाती थी, अब एडीबी द्वारा वित्तपोषित होने जा रही है। एक वरिष्ठ पाकिस्तानी अधिकारी ने बताया कि एडीबी कराची-रोहड़ी खंड के उन्नयन के लिए 2 अरब डॉलर का ऋण देने वाला है। यह परियोजना 50 अरब डॉलर के CPEC का सबसे बड़ा घटक है, जिसका उद्देश्य कराची और पेशावर के बीच 1,726 किलोमीटर लंबे ट्रैक का आधुनिकीकरण करना है।
चीन की वित्तीय अनिच्छा
चीन का यह कदम पाकिस्तान में बढ़ते सुरक्षा जोखिमों और चीनी बिजली उत्पादकों के प्रति बकाया भुगतान के कारण उठाया गया है। एडीबी का ऋण अस्थायी बाजार दर पर मिलेगा, जो पहले दी गई रियायती शर्तों से भिन्न है। विशेषज्ञों का मानना है कि परियोजना की लागत में बार-बार संशोधन और डिज़ाइन में बदलाव भी चीन की अनिच्छा का एक कारण है।