भारत ने अमेरिका के टैरिफ का सामना करते हुए नए बाजारों में कदम रखा
अमेरिका का टैरिफ निर्णय
अमेरिकी राष्ट्रपति ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, जिसमें उन्होंने भारत सहित कई देशों से आने वाली दवाओं पर 100% टैरिफ लगाने की घोषणा की। इसका अर्थ यह है कि यदि कोई दवा अमेरिका भेजी जाती है, तो उसकी लागत दोगुनी हो जाएगी। ट्रंप ने इसे 'मेड इन अमेरिका' को बढ़ावा देने की रणनीति बताया, लेकिन वास्तव में यह भारत की बढ़ती फार्मा शक्ति पर एक आर्थिक हमला था। भारत ने इस चुनौती को एक रणनीतिक अवसर में बदल दिया।
भारत की प्रतिक्रिया
भारत सरकार और फार्मा उद्योग ने तुरंत चार प्रमुख दिशा में कार्य करना शुरू किया। नए बाजारों में प्रवेश से लेकर उत्पादन को बढ़ावा देने तक, सप्लाई चेन को मजबूत करने से लेकर वैश्विक साझेदारियों को विकसित करने तक, भारत ने अपनी सप्लाई लाइन को पुनर्गठित किया। जो जहाज पहले अमेरिका जाते थे, वे अब यूरोप, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और रूस की ओर बढ़ रहे हैं। भारतीय कंपनियाँ जैसे सन फार्मा, डॉ. रेड्डीज, सिप्ला और लुपिन अब सीधे अफ्रीका, रूस और दक्षिण अमेरिका में दवाओं की आपूर्ति कर रही हैं।
वैश्विक समर्थन
जब अमेरिका ने भारत पर टैरिफ लगाया, तो बाकी दुनिया ने भारत का समर्थन किया। सबसे पहले रूस ने भारत के साथ संबंध मजबूत किए, इसके बाद यूरोप और अफ्रीका ने भी नई डील पर हस्ताक्षर किए। फ्रांस, जर्मनी, ब्राजील, मिस्र और इंडोनेशिया ने स्पष्ट किया कि यदि उन्हें दवाओं की आवश्यकता है, तो वह नई दिल्ली से होकर ही आएंगी।
डॉ. रेड्डीज़ का निवेश
डॉ. रेड्डीज़ लैबोरेटरीज ने अपनी पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी डॉ. रेड्डीज़ लैबोरेटरीज एलएलसी, रूस में ₹565 करोड़ का निवेश किया है और 45.19 प्रतिशत इक्विटी हिस्सेदारी हासिल की है। यह लेन-देन हैदराबाद स्थित कंपनी के बोर्ड द्वारा नवंबर 2024 में रूसी शाखा में ₹600 करोड़ तक निवेश करने के निर्णय का परिणाम है। यह निवेश कार्यशील पूंजी आवश्यकताओं के लिए किया जाएगा।