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भारत ने नेपाल की सीमा व्यापार पर आपत्ति को किया खारिज

भारत ने नेपाल द्वारा उठाई गई आपत्तियों को खारिज करते हुए स्पष्ट किया है कि लिपुलेख पास के माध्यम से सीमा व्यापार ऐतिहासिक रूप से संचालित होता आया है। नेपाल के दावों को बेबुनियाद बताते हुए, भारत ने इस व्यापार को फिर से शुरू करने के महत्व पर जोर दिया है। जानें इस विवाद के पीछे की सच्चाई और इसके क्षेत्रीय भू-राजनीतिक प्रभाव।
 

भारत का स्पष्ट रुख

भारत ने बुधवार को नेपाल द्वारा चीन के साथ सीमा व्यापार को लेकर उठाए गए सवालों को पूरी तरह से खारिज कर दिया। भारतीय सरकार ने काठमांडू के क्षेत्रीय दावों को "बेबुनियाद" और "ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं" बताया। यह प्रतिक्रिया नेपाल के विदेश मंत्रालय द्वारा लिपुलेख पास के माध्यम से व्यापार फिर से शुरू करने पर चिंता जताने के बाद आई।


लिपुलेख पास एक महत्वपूर्ण सामरिक दर्रा है जो भारत-चीन सीमा पर स्थित है, और नेपाल भी इस पर अपना दावा करता है। हाल ही में, भारत और चीन ने लिपुलेख पास, शिपकी ला पास और नाथू ला पास के माध्यम से सीमा व्यापार को फिर से शुरू करने का निर्णय लिया था, जिसके चलते नेपाल ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई।


विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता, रणधीर जायसवाल ने मीडिया से बातचीत में कहा, "हमने लिपुलेख पास के माध्यम से भारत और चीन के बीच सीमा व्यापार की बहाली पर नेपाल के विदेश मंत्रालय की टिप्पणियों को नोट किया है। हमारी स्थिति इस मामले में स्पष्ट और सुसंगत है। लिपुलेख पास के माध्यम से व्यापार 1954 से चल रहा है और हाल के वर्षों में कोविड-19 और अन्य कारणों से बाधित हुआ था। अब दोनों पक्षों ने इसे फिर से शुरू करने पर सहमति जताई है।"


भारत का यह रुख नेपाल के दावों को सीधे चुनौती देता है, जिसमें लिपुलेख दर्रे को नेपाल का हिस्सा बताया गया है। नई दिल्ली का कहना है कि यह व्यापार मार्ग ऐतिहासिक रूप से संचालित होता आया है, जो नेपाल के दावों का खंडन करता है। विदेश मंत्रालय का यह बयान भारत-नेपाल संबंधों में एक संवेदनशील मुद्दे पर दिल्ली के दृढ़ रुख को दर्शाता है।


कोविड-19 महामारी के कारण बाधित सीमा व्यापार को फिर से शुरू करना दोनों देशों के लिए आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। लिपुलेख पास जैसे मार्गों के माध्यम से व्यापार को पुनर्जीवित करने से आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करने और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। हालांकि, सीमा विवाद का मुद्दा अभी भी भारत-नेपाल संबंधों में एक पेचीदा पहलू बना हुआ है, और भारत का यह स्पष्टीकरण क्षेत्रीय भू-राजनीति में महत्वपूर्ण निहितार्थ रखता है।