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भारत पर ट्रंप का आर्थिक दबाव: यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में नई चुनौतियाँ

अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने हाल ही में भारत पर ट्रंप द्वारा लगाए गए आर्थिक दबाव के बारे में जानकारी दी है। उन्होंने बताया कि कैसे भारत पर द्वितीयक शुल्क लगाने का निर्णय रूस को यूक्रेन युद्ध समाप्त करने के लिए मजबूर करने के उद्देश्य से लिया गया है। इस बीच, भारत ने अपने रूसी तेल आयात का बचाव किया है, जबकि अमेरिका और यूरोप ने इस पर आलोचना की है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय रखी है। जानें इस विवाद के पीछे की पूरी कहानी और इसके संभावित प्रभाव।
 

अमेरिकी उपराष्ट्रपति का बयान

अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने रविवार (16 अगस्त) को कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस को यूक्रेन युद्ध समाप्त करने के लिए भारत पर "आक्रामक आर्थिक दबाव" डालने का निर्णय लिया है। इसमें भारत पर द्वितीयक शुल्क (सेकेंडरी टैरिफ) लगाने का प्रस्ताव शामिल है। एनबीसी न्यूज़ के *मीट द प्रेस* कार्यक्रम में वेंस ने बताया कि ये कदम मॉस्को की तेल व्यापार से होने वाली आय को कम करने के लिए उठाए गए हैं। उन्होंने कहा, "ट्रंप ने आक्रामक आर्थिक दबाव लागू किया है, जैसे कि भारत पर द्वितीयक शुल्क, ताकि रूसियों को उनकी तेल अर्थव्यवस्था से अमीर होने से रोका जा सके।"


भारत की नीति पर अमेरिका की आलोचना

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, ट्रंप प्रशासन ने भारत द्वारा रूस से रियायती दरों पर कच्चा तेल खरीदने की आलोचना की है। पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद, भारत की इस नीति को वाशिंगटन ने रूस की सैन्य गतिविधियों को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन देने वाला माना है। इंटरव्यू में पत्रकार क्रिस्टन वेल्कर ने सवाल उठाया, "यदि अमेरिका नए प्रतिबंध नहीं लगा रहा है, तो रूस पर दबाव क्या है? आप उन्हें कैसे यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की के साथ बातचीत की मेज पर लाएंगे और बमबारी रोकने के लिए मजबूर करेंगे?"


रूसी तेल खरीद का विवाद

भारत पर निशाना: रूसी तेल खरीद का विवाद

जेडी वेंस ने जवाब दिया कि ट्रंप के शुल्क मॉस्को को बातचीत की ओर धकेलने का एक सुनियोजित प्रयास हैं। वेंस ने कहा, "उन्होंने यह स्पष्ट करने की कोशिश की है कि यदि रूस हत्याएं बंद कर देता है, तो उसे वैश्विक अर्थव्यवस्था में पुनः शामिल किया जा सकता है। लेकिन अगर वे ऐसा नहीं करते, तो उनकी अलगाव की स्थिति बनी रहेगी।"


चीन की स्थिति

हैरानी की बात यह है कि भारत की तुलना में चीन, जो रूसी तेल का सबसे बड़ा खरीदार है, ट्रंप प्रशासन की आलोचना से काफी हद तक बचा हुआ है। भारत ने बार-बार अपने रूसी तेल आयात का बचाव किया है, यह कहते हुए कि ये निर्णय राष्ट्रीय हित और बाजार की गतिशीलता पर आधारित हैं। फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद, जब पश्चिमी देशों ने रूसी तेल से दूरी बनाई, तो नई दिल्ली ने रियायती दरों पर रूसी तेल खरीदना शुरू किया।


जयशंकर का पलटवार

जयशंकर का पलटवार: "तेल खरीदना हमारा अधिकार"

शनिवार को नई दिल्ली में एक कार्यक्रम में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिका और यूरोप पर निशाना साधते हुए भारतीय सामानों पर लगाए गए शुल्कों की आलोचना की। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, "यह मजेदार है कि एक व्यवसाय-समर्थक अमेरिकी प्रशासन के लोग दूसरों पर कारोबार करने का आरोप लगा रहे हैं।" उन्होंने आगे कहा, "यह वाकई आश्चर्यजनक है। अगर आपको भारत से तेल या परिष्कृत उत्पाद खरीदने में समस्या है, तो मत खरीदिए। कोई आपको जबरदस्ती नहीं कर रहा। लेकिन यूरोप खरीदता है, अमेरिका खरीदता है, तो अगर आपको पसंद नहीं, तो मत खरीदिए।"


ट्रंप का 50% टैरिफ

भारत पर ट्रंप का 50% टैरिफ

ट्रंप ने भारतीय सामानों पर शुल्क को दोगुना कर 50% कर दिया है, जिसमें रूस से तेल खरीद के लिए 25% अतिरिक्त शुल्क शामिल है। इससे नई दिल्ली और वाशिंगटन के बीच व्यापारिक संबंधों में तनाव बढ़ गया है। अप्रैल में जयपुर यात्रा के दौरान वेंस ने भारत से गैर-शुल्क बाधाओं को कम करने, अमेरिकी उत्पादों को अधिक बाजार पहुंच देने और अमेरिकी ऊर्जा और रक्षा उपकरणों की खरीद बढ़ाने का आग्रह किया था।


यूक्रेन संकट में प्रगति की उम्मीद

यूक्रेन संकट में प्रगति की उम्मीद

इन शुल्कों के बावजूद, वेंस ने यूक्रेन संकट में प्रगति की संभावना पर आशावादी रुख अपनाया। वेंस ने कहा, "मुझे लगता है कि रूस ने पिछले साढ़े तीन सालों में पहली बार राष्ट्रपति ट्रंप को महत्वपूर्ण रियायतें दी हैं। वे अपनी कुछ प्रमुख मांगों पर लचीलापन दिखाने को तैयार हुए हैं। भारत और अमेरिका के बीच बढ़ते व्यापारिक तनाव और रूस-यूक्रेन युद्ध के भू-राजनीतिक प्रभाव वैश्विक मंच पर चर्चा का केंद्र बने हुए हैं। भारत ने साफ किया है कि वह अपनी ऊर्जा सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देगा।