भारत-बांग्लादेश संबंधों में तनाव: क्या 'सेवन सिस्टर्स' को अलग करना संभव है?
भारत और बांग्लादेश के बीच तनाव
नई दिल्ली: भारत और बांग्लादेश के बीच संबंधों में तनाव उस समय बढ़ गया जब 17 दिसंबर को भारत ने बांग्लादेश के उच्चायुक्त को तलब किया। यह कदम भारतीय उच्चायोग की सुरक्षा को लेकर चिंता जताने के बाद उठाया गया।
यह स्थिति तब उत्पन्न हुई जब बांग्लादेश की नेशनल सिटिजन पार्टी के नेता हसनत अब्दुल्ला ने भारत के 'सेवन सिस्टर्स' राज्यों को मुख्य भूमि से अलग करने की धमकी दी। लेकिन क्या यह वास्तव में संभव है?
भौगोलिक सच्चाई
भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र सिलीगुड़ी कॉरिडोर के माध्यम से देश के अन्य हिस्सों से जुड़ा हुआ है, जिसे 'चिकन नेक' कहा जाता है। यह कॉरिडोर पश्चिम बंगाल में पूरी तरह से भारत के भीतर स्थित है। हालांकि बांग्लादेश चार पूर्वोत्तर राज्यों की सीमाओं से घिरा है, लेकिन सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर उसका कोई प्रत्यक्ष नियंत्रण नहीं है।
शक्ति संतुलन
बांग्लादेश के पास न तो सैन्य, न आर्थिक और न ही राजनीतिक क्षमता है कि वह भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को अलग कर सके। ऐसा करने के लिए सिलीगुड़ी कॉरिडोर को काटना होगा, जो केवल प्रत्यक्ष सैन्य कार्रवाई से संभव है। भारत की सैन्य शक्ति के सामने ऐसा कदम बांग्लादेश के लिए आत्मघाती साबित होगा।
सैन्य ताकत में अंतर
भारत का रक्षा बजट बांग्लादेश से लगभग 17 गुना बड़ा है और उसकी सेना दुनिया की सबसे शक्तिशाली सेनाओं में से एक मानी जाती है। 1971 में भारत ने बांग्लादेश को स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 2025 के अंत तक भारत ने सिलीगुड़ी कॉरिडोर की सुरक्षा के लिए नए सैन्य ठिकाने स्थापित करने की योजना बनाई है।
बांग्लादेश की कमजोरियां
भारतीय रणनीतिकारों का मानना है कि बांग्लादेश के पास भी अपने 'चिकन नेक' हैं। रंगपुर कॉरिडोर, जो उत्तरी बांग्लादेश को बाकी देश से जोड़ता है, केवल 10-15 किलोमीटर चौड़ा है। किसी भी टकराव की स्थिति में यह क्षेत्र अधिक असुरक्षित होगा। इसके अलावा, बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था भारत से मिलने वाले ट्रांजिट राजस्व पर निर्भर है।
बयानबाजी बनाम वास्तविकता
विशेषज्ञों का मानना है कि हसनत अब्दुल्ला का बयान घरेलू राजनीति और भारत-विरोधी भावनाओं को भड़काने का प्रयास है। अंतरिम यूनुस सरकार के दौरान पाकिस्तान और चीन के साथ नजदीकी बढ़ने के संकेत मिले हैं, लेकिन भारत की क्षेत्रीय पकड़ और सैन्य प्रभुत्व के सामने पूर्वोत्तर को अलग करने की कल्पना व्यावहारिक नहीं है।