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भारत में आपातकाल: 50 साल पहले की ऐतिहासिक घटना

25 जून 2025 को, भारत में आपातकाल की घोषणा की 50वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। यह दिन उस समय का प्रतीक है जब इंदिरा गांधी ने अपनी राजनीतिक स्थिति को सुरक्षित रखने के लिए आपातकाल लागू किया था। जानें इस ऐतिहासिक घटना के पीछे की कहानी, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय और इसके परिणामों के बारे में। यह घटना भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, जिसने न्यायिक इतिहास को प्रभावित किया।
 

आपातकाल की घोषणा

आपातकाल: आज 25 जून, 2025 है, और यह दिन भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ का प्रतीक है। ठीक 50 वर्ष पहले, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी। यह कदम उन्होंने अपनी राजनीतिक स्थिति को सुरक्षित रखने के लिए उठाया था। दरअसल, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी की संसद सदस्यता को रद्द कर दिया था, जिससे वह अगले छह वर्षों तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हो गई थीं। यह मामला 23 जून को सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति अय्यर के समक्ष प्रस्तुत किया गया था। इंदिरा गांधी को तत्काल राहत की आवश्यकता थी, जबकि विपक्ष भी पूरी तरह से तैयार था और उसने कैविएट दाखिल कर कोर्ट से अनुरोध किया था कि किसी भी अंतरिम आदेश से पहले उसका पक्ष सुना जाए।


घटनाक्रम का विवरण

12 जून के निर्णय पर रोक लगाने की मांग करते हुए पालखीवाला ने देश की स्थिरता की आवश्यकता पर जोर दिया। शांति भूषण ने तर्क दिया कि किसी एक व्यक्ति के लिए गणतंत्र और कानून की गरिमा से समझौता नहीं किया जा सकता। उन्होंने इंदिरा गांधी की मंशा पर सवाल उठाते हुए हाईकोर्ट से स्थगन प्राप्त करने के समय दिए गए तर्क का हवाला दिया।

इंदिरा गांधी के वकीलों ने कहा कि फैसले के क्रियान्वयन पर रोक आवश्यक थी ताकि कांग्रेस संसदीय दल नया नेता चुन सके। शांति भूषण ने आपत्ति जताई कि कांग्रेस ने कोई नया नेता नहीं चुना है और इंदिरा अभी भी पद पर बनी हुई हैं।

पालखीवाला ने कहा कि अपील के लिए स्थगन आवश्यक था और नए नेता के चुनाव के लिए व्यक्ति परिवर्तन जरूरी नहीं है। यदि पार्टी के सांसद सर्वसम्मति से इंदिरा का समर्थन कर रहे हैं, तो इसमें कोई विरोधाभास नहीं है।


सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला

दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद, न्यायमूर्ति अय्यर ने 24 जून को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय पर रोक लगा दी। हालांकि, यह रोक कुछ शर्तों के साथ थी। इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री के पद पर बनी रह सकती थीं, लेकिन उन्हें संसद में वोट देने और सांसद के रूप में वेतन-भत्ते पाने की अनुमति नहीं थी। यह आदेश इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री पद पर बने रहने की राह में कानूनी बाधा को दूर करता था, लेकिन उनकी स्थिति देश और दुनिया के सामने कमजोर हो गई थी।


इंदिरा गांधी का अगला कदम

इंदिरा के इस कदम से बदल गया सब कुछ

इंदिरा गांधी ने अगले दिन जो कदम उठाने का निर्णय लिया, उससे संसद की कार्यवाही केवल दिखावा बन गई और अदालतें निष्क्रिय हो गईं। उन्होंने अपने विरोधियों को जेल में डालने के लिए कदम उठाने के साथ-साथ अदालतों को पटरी पर लाने की तैयारी भी की।

अप्रैल 1973 में, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की वरिष्ठता को दरकिनार करते हुए ए.एन. रे को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया। 25 जून और उसके बाद के 19 महीनों की घटनाएं इसी का विस्तार थीं। यह भारतीय लोकतंत्र और न्यायिक इतिहास का एक काला दौर था।