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भारत में आवासीय संपत्तियों की कीमतों में तेजी: क्या आम नागरिकों के लिए घर खरीदना अब संभव नहीं?

भारत के प्रमुख शहरों में आवासीय संपत्तियों की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं, जिससे आम नागरिकों के लिए घर खरीदना कठिन होता जा रहा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, 2025 और 2026 में घरों की कीमतों में क्रमशः 6.3% और 7.0% की वृद्धि की संभावना है। निचले और मध्यम वर्ग के लोग अब घर खरीदने में असमर्थ हैं और किराए पर रहने को मजबूर हैं। हालांकि ब्याज दरों में कमी की गई है, लेकिन इसका प्रभाव सीमित है। जानें इस संकट के पीछे की संरचनात्मक समस्याएं और उनके समाधान।
 

आवासीय संपत्तियों की कीमतों में वृद्धि

भारत के प्रमुख शहरों में आवासीय संपत्तियों की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं। एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, 2025 में घरों की औसत कीमतों में 6.3% और 2026 में 7.0% की वृद्धि की संभावना है। यह पूर्व में दिए गए 6% और 5% के अनुमानों से कहीं अधिक है। वर्ष 2024 में ही घरों की कीमतों में लगभग 4% की वृद्धि हो चुकी है। पिछले एक दशक से बढ़ती कीमतों की यह प्रवृत्ति अब एक गंभीर सामाजिक संकट का रूप ले रही है, जिससे आम नागरिकों के लिए घर खरीदना कठिन होता जा रहा है, विशेषकर उन लोगों के लिए जिनकी आय कम है।


बढ़ती कीमतें और आम लोगों की समस्याएं

निचले और मध्यम वर्ग के कई लोग अब शहरी और उपनगरीय बाजार में घर खरीदने में असमर्थ हो गए हैं। सर्वेक्षण के अनुसार, मजबूत मैक्रोइकोनॉमिक आंकड़े गरीब तबके को कोई लाभ नहीं पहुंचा पा रहे हैं, जिससे वे काफी पिछड़ गए हैं। सीमित डिस्पोजेबल आय के कारण, कई लोग घर खरीदने के बजाय किराए पर रहने को मजबूर हैं ताकि वे अपने काम और परिवार के करीब रह सकें। रिपोर्ट के अनुसार, जैसे-जैसे घर खरीदना कठिन होता जा रहा है, लोग किराए की ओर बढ़ रहे हैं, जिससे किराया दरों में 5% से 8% तक की वृद्धि की संभावना है, जो सामान्य महंगाई दर से भी अधिक है।


ब्याज दरों में कमी का सीमित प्रभाव

हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में 100 बेसिस पॉइंट की कमी की है, जिससे दरें 5.50% तक आ गई हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इसका प्रभाव सीमित रहेगा। घरों की कीमतें जिस तेजी से बढ़ रही हैं, वह ब्याज दरों में कमी को पीछे छोड़ रही है। मीडिया के सर्वे में शामिल 19 विशेषज्ञों में से 10 ने कहा कि आने वाले साल में घर खरीदना थोड़ा आसान हो सकता है, जबकि 9 विशेषज्ञों ने इसे और कठिन बताया है। यह बदलाव जून में आए सर्वे के विपरीत है, जहां अधिकतर विशेषज्ञ बेहतर हालात की उम्मीद कर रहे थे।


संरचनात्मक समस्याएं बनी चुनौती

वास्तविक समस्या केवल ब्याज दरों या कीमतों की नहीं है, बल्कि सिस्टम की संरचना की भी है। रियल एस्टेट के वित्तीयकरण के बाद से अफोर्डेबिलिटी में कोई सुधार नहीं हुआ है, जिससे हालात और बिगड़ गए हैं। अब एक व्यक्ति के लिए घर खरीदने की औसत उम्र 30-40 से बढ़कर 45 साल हो गई है। क्रोनी कैपिटलिज्म की शुरुआत जमीन की मिल्कियत से होती है। जब जमीन कुछ अमीरों के हाथ में होती है, तो सस्ती आवास योजनाएं कैसे बनेंगी? यही कारण है कि हाउसिंग विकल्प नहीं देती, केवल निराशा देती है।