भारत में उप राष्ट्रपति चुनाव: निर्विरोध चयन की दुर्लभता
भारत में उप राष्ट्रपति का चुनाव
भारत में उप राष्ट्रपति का निर्विरोध चुना जाना एक असामान्य घटना है। गणतंत्र की स्थापना के बाद, यानी 1950 से लेकर अब तक, केवल चार उप राष्ट्रपति निर्विरोध चुने गए हैं। इसके अलावा, हर बार विपक्षी दलों ने अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। इनमें से दो बार डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को निर्विरोध चुना गया, जो देश के पहले उप राष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति भी थे। इसके अतिरिक्त, एक बार एमएन हिदायतुल्ला और एक बार शंकर दयाल शर्मा को भी निर्विरोध चुना गया। शंकर दयाल शर्मा का चुनाव 1987 में हुआ, जब कांग्रेस के पास 415 सांसदों का बहुमत था, जिसके कारण विपक्ष ने कोई उम्मीदवार नहीं उतारा। हालांकि, 21 अन्य लोगों ने नामांकन भरा था, जो बाद में रद्द कर दिए गए।
गठबंधन राजनीति का प्रभाव
शंकर दयाल शर्मा 1987 में उप राष्ट्रपति बने और इसके दो साल बाद, 1989 में भारत में गठबंधन राजनीति का युग शुरू हुआ। इस दौरान भाजपा और वामपंथी दलों के समर्थन से जनता दल के वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने। इसके बाद से उप राष्ट्रपति का चुनाव कभी भी निर्विरोध नहीं हुआ। हर बार विपक्ष ने अपने उम्मीदवार को मैदान में उतारा, हालांकि विपक्ष का उम्मीदवार कभी भी जीत नहीं सका। 2002 में सबसे करीबी मुकाबला हुआ, जब एनडीए के भैरोसिंह शेखावत का सामना कांग्रेस के सुशील कुमार शिंदे से हुआ। शिंदे को 40 प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे। इसके बाद से विपक्ष के उम्मीदवार को 35 प्रतिशत से अधिक वोट नहीं मिले। कांग्रेस के शासन में दो चुनाव हुए, जिसमें हामिद अंसारी उम्मीदवार थे। नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद, विपक्ष ने पहले गोपालकृष्ण गांधी और फिर मारग्रेट अल्वा को उम्मीदवार बनाया। 2022 में कर्नाटक की मारग्रेट अल्वा उम्मीदवार थीं, और 2023 में कांग्रेस ने वहां बड़ी जीत हासिल की।