भारत में खपत-आधारित विकास: कर्ज और उपभोग का नया युग
खपत-आधारित विकास का उदय
भारत में अब एक नया विकास मॉडल उभर रहा है, जो खपत पर आधारित है। पहले जहां निवेश और बचत पर जोर दिया जाता था, वहीं अब उपभोग और ऋण पर आधारित वृद्धि हो रही है। उपभोक्ता ऋण का विस्तार अब एक नई आर्थिक शक्ति का प्रतीक बन चुका है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी डिजिटल लोन आसानी से उपलब्ध हो रहे हैं। पहले जहां साहूकार ऊंचे ब्याज पर कर्ज देते थे, वहीं अब बैंक, एनबीएफसी और फिनटेक कंपनियां सरल शर्तों पर घर, शिक्षा, स्वास्थ्य और व्यापार के लिए वित्त उपलब्ध करा रही हैं। यह आर्थिक समावेशन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
बचत से कर्ज की ओर
भारत की अर्थव्यवस्था एक नए चरण में प्रवेश कर रही है, और इसके नागरिक भी। पहले बचत को जीवन का मूल मंत्र माना जाता था, लेकिन अब खर्च और कर्ज दोनों का सह-अस्तित्व हो रहा है। यह बदलाव केवल आदतों का नहीं, बल्कि सोच और समाज के स्वभाव का भी संकेत है। इसे भावनाओं से नहीं, बल्कि आंकड़ों और नीतियों के माध्यम से समझना आवश्यक है।
पिछले दशक में घरेलू बचत दर में लगातार गिरावट आई है। 2011 में यह 23 प्रतिशत थी, जो अब घटकर लगभग 18 प्रतिशत रह गई है। इसका मतलब यह नहीं है कि लोग गैर-जिम्मेदार हो गए हैं; बल्कि यह दर्शाता है कि वे अपनी आवश्यकताओं और इच्छाओं को पूरा करने के लिए कर्ज का सहारा ले रहे हैं।
कर्ज के साथ जोखिम
हालांकि, कर्ज के साथ जोखिम भी जुड़ा होता है। कई बार लोग बिना पूरी जानकारी के लोन ले लेते हैं, जिससे EMI चुकाने में कठिनाई होती है। इसलिए वित्तीय साक्षरता आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। लोगों को यह समझाना होगा कि कर्ज कैसे काम करता है, ब्याज कैसे बढ़ता है और बजट कैसे बनाना चाहिए।
शराब पर सामाजिक बहस
एक सामाजिक मुद्दा है शराब का सेवन। अक्सर कहा जाता है कि लोग कर्ज लेकर शराब खरीदते हैं, लेकिन आंकड़े इसे समर्थन नहीं देते। NSSO के अनुसार, शराब पर खर्च कुल उपभोग का दो प्रतिशत से भी कम है। हालांकि, इसके सामाजिक प्रभाव गहरे हैं। राज्य सरकारों को शराब से 15 से 25 प्रतिशत तक का राजस्व मिलता है, जिससे स्कूल, अस्पताल और सड़कें बनती हैं।
नीति में संतुलन
नीति बनाते समय इस संतुलन को समझना आवश्यक है। उदाहरण के लिए, केरल को शराब से हर साल हजारों करोड़ रुपये का राजस्व मिलता है, लेकिन वहीं शराब-जनित बीमारियां भी सर्वाधिक हैं। यह दर्शाता है कि केवल आय नहीं, बल्कि सामाजिक लागत भी देखनी होगी।
वैज्ञानिक आधार पर टैक्स
दुनिया के कई देशों में 'सिन टैक्स' का मॉडल अपनाया गया है, जहां शराब की मात्रा और पैकेजिंग के आधार पर टैक्स तय होता है। भारत में अभी तक ऐसा कोई वैज्ञानिक मॉडल नहीं है। यहां हर राज्य का अपना नियम है, जो अक्सर नीति नहीं, बल्कि राजनीति से तय होता है।
आर्थिक सोच में बदलाव
भारत को अब एक नई आर्थिक सोच की आवश्यकता है। कर्ज को केवल संकट नहीं, बल्कि अवसर समझना चाहिए। सही उपयोग से यह लोगों को आगे बढ़ने की ताकत देता है। इसके लिए शिक्षा, नियमन और नीति का तालमेल आवश्यक है।