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भारत में बादल फटने की घटनाओं में वृद्धि: जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

भारत में बादल फटने की घटनाएं पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ी हैं, जिससे बाढ़ और भूस्खलन जैसी गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। जलवायु परिवर्तन, अंधाधुंध निर्माण और वनों की कटाई इसके प्रमुख कारण हैं। इस लेख में हम इन घटनाओं के इतिहास, उनके प्रभाव और भविष्यवाणी की आवश्यकता पर चर्चा करेंगे। जानें कैसे ये घटनाएं न केवल जान-माल को नुकसान पहुंचाती हैं, बल्कि धार्मिक यात्राओं और पर्यावरण को भी प्रभावित करती हैं।
 

बादल फटने की घटनाओं में वृद्धि

भारत में बादल फटने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। 1970 से 2016 के बीच केवल 30 घटनाएं दर्ज की गई थीं, जबकि पिछले 9 वर्षों में 8 गंभीर घटनाएं सामने आई हैं। जलवायु परिवर्तन, अंधाधुंध निर्माण और वनों की कटाई इसके प्रमुख कारण माने जा रहे हैं, विशेषकर हिमालयी क्षेत्रों में।


बादल फटने के दौरान होने वाली तबाही

भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, बादल फटने के समय अचानक भारी बारिश होती है, जिससे बाढ़, भूस्खलन और अन्य तबाही होती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते वातावरण में नमी की मात्रा बढ़ गई है। तापमान में एक डिग्री की वृद्धि से हवा में 7 प्रतिशत अधिक नमी आ जाती है, जिससे बारिश की तीव्रता बढ़ जाती है।


बाढ़ का खतरा और उसके कारण

हिमालय की ऊँचाई इस खतरे को और बढ़ाती है। पहाड़ों पर वनों की कटाई और अनियोजित निर्माण के कारण मिट्टी पानी को अवशोषित नहीं कर पाती, जिससे अचानक बाढ़ आ जाती है। बांध, सड़कें और बस्तियां इस खतरे को और बढ़ा देती हैं।


भयानक त्रासदियों का इतिहास

इतिहास में 1908 में हैदराबाद में बादल फटने से 15,000 लोगों की मौत हुई थी। 1970 में अलकनंदा घाटी में भारी तबाही आई। 2005 में मुंबई में 950 मिलीमीटर बारिश से 1,000 से अधिक लोग मरे। 2010 में लेह में 179 मौतें हुईं। 2013 में केदारनाथ त्रासदी ने हजारों लोगों की जान ली। हाल के वर्षों में उत्तरकाशी और किश्तवाड़ में भी बादल फटने से भारी नुकसान हुआ है।


धार्मिक यात्राओं पर प्रभाव

2025 में किश्तवाड़ के चशोटी में बादल फटने से 45 लोगों की जान गई और 100 लोग घायल हुए। हाल ही में उत्तरकाशी के धराली गांव में 4 लोग मारे गए और 50 से अधिक लापता हैं। अमरनाथ यात्रा और मचैल माता यात्रा जैसी धार्मिक यात्राएं भी प्रभावित हुई हैं। इन घटनाओं का प्रभाव केवल जान-माल के नुकसान तक सीमित नहीं है; सड़कें टूटने से सहायता समय पर नहीं पहुंच पाती, और बिजली तथा संचार व्यवस्था ठप हो जाती है।


भविष्यवाणी की आवश्यकता

विशेषज्ञों का मानना है कि इन आपदाओं को पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता, लेकिन नुकसान को कम किया जा सकता है। इसके लिए वनों की कटाई पर रोक लगानी होगी, निर्माण कार्यों को सावधानी से करना होगा और नदियों तथा नालों को सुरक्षित रखना होगा। मौसम विभाग को भी तकनीकी सहायता से सटीक भविष्यवाणी करने की आवश्यकता है ताकि लोगों को समय पर चेतावनी दी जा सके।