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भारत में मुद्रा का विकास: प्राचीन सिक्कों से डिजिटल भुगतान तक

भारत में मुद्रा का इतिहास प्राचीन सिक्कों से शुरू होकर आज के डिजिटल भुगतान प्रणाली तक का सफर दर्शाता है। इस लेख में जानें कि कैसे पंचमार्क सिक्कों से लेकर QR कोड स्कैनिंग तक की यात्रा हुई। भारत में पहले कागज़ी नोट से लेकर UPI तक के विकास की कहानी को जानने के लिए पढ़ें।
 

भारत में मुद्रा का ऐतिहासिक सफर


भारत में मुद्रा का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। यहां पहला सिक्का लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व में प्रचलित हुआ था। ये सिक्के मौर्य साम्राज्य के दौरान बनाए गए थे और इन्हें "पंचमार्क सिक्के" कहा जाता था। इन सिक्कों पर विशेष चिह्न होते थे और ये चांदी से निर्मित होते थे।


विभिन्न शासकों और राजवंशों ने समय के साथ अपने-अपने सिक्के चलाए। मुगल काल में सोने, चांदी और तांबे के सुंदर सिक्के बनाए गए, जिन पर बादशाहों के नाम और इस्लामी लेखन अंकित होते थे।


भारत में पहला कागज़ी नोट 1861 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा जारी किया गया था। यह ₹10 का नोट था और इसे सरकारी बैंकों ने जारी किया था। भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना के बाद, नोटों के डिजाइन और सुरक्षा फीचर्स में सुधार किया गया।


आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में कभी ₹10,000 का नोट भी प्रचलन में था। यह पहली बार 1938 में जारी हुआ और फिर 1954 में दोबारा छापा गया। लेकिन 1978 में ₹1,000, ₹5,000 और ₹10,000 के नोटों को बंद कर दिया गया।


इसके बाद, भारत की अर्थव्यवस्था ने तेजी से डिजिटल दिशा में कदम बढ़ाया। 2016 में नोटबंदी के बाद डिजिटल लेनदेन को और बढ़ावा मिला। आज भारत में UPI (Unified Payments Interface) एक बेहद लोकप्रिय और सरल पेमेंट सिस्टम बन चुका है, जिससे हर वर्ग के लोग आसानी से पैसे ट्रांसफर कर सकते हैं।


आज हम जिस तेज़ और सुरक्षित पेमेंट तकनीक का उपयोग कर रहे हैं, वह पंचमार्क सिक्कों से लेकर QR कोड स्कैनिंग तक के लंबे सफर का परिणाम है।