भारत में वायु प्रदूषण: विशेषज्ञों की चेतावनी और सरकार के दावे पर सवाल
नई दिल्ली में वायु प्रदूषण पर बढ़ती चिंता
नई दिल्ली: देश में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर और इसके स्वास्थ्य पर प्रभावों को लेकर चर्चा तेज हो गई है। सरकार के इस दावे कि उच्च एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) और फेफड़ों की बीमारियों के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है, पर अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सवाल उठाए हैं।
विशेषज्ञों की राय
यूके की नेशनल हेल्थ सर्विस से जुड़े वरिष्ठ कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. रजय नारायण का कहना है कि इस मुद्दे पर राजनीति से ज्यादा विज्ञान को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
सरकार के दावे पर आपत्ति
डॉ. नारायण ने स्पष्ट किया कि यह कहना गलत है कि बढ़ा हुआ AQI फेफड़ों की बीमारियों से सीधे तौर पर जुड़ा नहीं है। उनके अनुसार, वैज्ञानिक अनुसंधान और वैश्विक अनुभव इसके विपरीत हैं। प्रदूषित हवा में लंबे समय तक सांस लेना श्वसन तंत्र को नुकसान पहुंचाता है और हृदय संबंधी समस्याओं का खतरा बढ़ाता है।
NAAQS और WHO मानकों में अंतर
डॉ. नारायण के अनुसार, भारत सरकार नेशनल एंबिएंट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड्स (NAAQS) का पालन करती है, जिसमें PM2.5 का स्तर लगभग 40 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर स्वीकार्य माना गया है। इसके विपरीत, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) कहीं अधिक सख्त मानक निर्धारित करता है, जिसके अनुसार यह स्तर दैनिक या वार्षिक आधार पर 5 से 15 के बीच होना चाहिए।
प्रदूषण स्तर की गंभीरता
विशेषज्ञों का कहना है कि वर्तमान स्थिति बेहद चिंताजनक है। कई शहरों में प्रदूषण का स्तर सरकार द्वारा निर्धारित मानकों से 10, 15 या 20 गुना अधिक है। ऐसे में यह कहना कि इसका स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, वैज्ञानिक तथ्यों की अनदेखी करना है। यदि यह स्थिति बनी रही, तो बीमारियों का बोझ और बढ़ेगा।
वैश्विक दृष्टिकोण
डॉ. नारायण ने कहा कि भारत को उन उपायों को अपनाना चाहिए जो अन्य विकसित देशों ने किए हैं। इन देशों ने सख्त उत्सर्जन नियम, स्वच्छ ऊर्जा और प्रदूषण नियंत्रण पर ध्यान केंद्रित किया है। वहां नीति निर्माण में अनुसंधान और आंकड़ों का उपयोग किया जाता है, न कि तात्कालिक राजनीतिक लाभ के लिए।
समाधान की आवश्यकता
विशेषज्ञों का मानना है कि अब भारत को अपने वायु गुणवत्ता मानकों की समीक्षा करने का समय आ गया है। विज्ञान आधारित नीतियों, कड़े नियमों और उनके सख्त पालन के बिना स्थिति में सुधार नहीं होगा। डॉ. नारायण की चेतावनी स्पष्ट है- यदि अभी कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में फेफड़ों और हृदय रोगों का संकट और बढ़ सकता है।