भारत में सड़क सुरक्षा: दुर्घटनाओं की बढ़ती संख्या और समाधान
सड़क दुर्घटनाओं का बढ़ता संकट
दुर्घटनाओं में वृद्धि का मुख्य कारण नियमों की अनदेखी और सेवाओं की कमी है। इसके समाधान के लिए, सबसे पहले, आपातकालीन सेवाओं को मजबूत करना आवश्यक है। हर 10 किलोमीटर पर ट्रॉमा सेंटर स्थापित किए जाने चाहिए और एकीकृत हेल्पलाइन ‘112’ को प्रभावी बनाना होगा। दूसरा, शिक्षा के माध्यम से, स्कूलों में ट्रैफिक जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए। तीसरा, प्रवर्तन को सख्त करना होगा, जिसमें पुलिस भर्ती बढ़ाना, ई-मॉनिटरिंग लागू करना और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण पाना शामिल है। चौथा, बुनियादी ढांचे में सुधार करना होगा, जैसे सड़कें और साइनेज।
दिल्ली, भारत की राजधानी, तेजी से विकसित हो रही है, लेकिन सड़क विकास में कमी आई है। यह प्रगति दुर्घटनाओं और मौतों का कारण बन रही है। 14 सितंबर 2025 को एक भयानक घटना हुई, जब एक लग्जरी बीएमडब्ल्यू ने एक बाइक को टक्कर मार दी, जिससे वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी की मौत हो गई और उनकी पत्नी गंभीर रूप से घायल हो गईं। पुलिस ने इस मामले में दोषपूर्ण हत्या का मामला दर्ज किया है।
हर साल लाखों सड़क दुर्घटनाएं होती हैं, जिनमें से अधिकांश को रोका जा सकता है। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। मुख्य कारण आपातकालीन सेवाओं की कमी, यातायात नियमों की अनदेखी और कानून प्रवर्तन एजेंसियों की सुस्ती है।
हालिया दुर्घटना में अधिकारी नवजोत सिंह की मौत ने सभी को झकझोर दिया। पुलिस जांच में पता चला कि कार की गति सीमा से अधिक थी। लेकिन सबसे बड़ी लापरवाही प्राथमिक चिकित्सा सहायता की अनुपस्थिति थी। दिल्ली जैसे महानगर में एम्बुलेंस को पहुंचने में 20-30 मिनट लग जाते हैं।
यदि ‘गोल्डन ऑवर’ में उचित उपचार मिल जाता, तो नवजोत की जान बच सकती थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में सड़क दुर्घटनाओं में 50 प्रतिशत मौतें प्री-हॉस्पिटल चरण में होती हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में 1,55,622 सड़क मौतें हुईं, जिनमें से 69,240 दोपहिया वाहनों से जुड़ी थीं। सड़क परिवहन मंत्रालय के अनुसार, 2022 में 4,64,910 दुर्घटनाओं में 1,47,913 मौतें हुईं।
भारत में एम्बुलेंस सेवाएं अक्सर ओवरलोडेड होती हैं, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में। यहां एम्बुलेंस पहुंचने में औसतन 45 मिनट लगते हैं। दिल्ली में, जहां वाहनों की संख्या 1 करोड़ से अधिक है, ट्रैफिक जाम एम्बुलेंस की गति को प्रभावित करता है।
फोरेंसिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि प्री-हॉस्पिटल इमरजेंसी केयर मजबूत होती, तो 30-50 प्रतिशत जानें बचाई जा सकती थीं। लेकिन सरकार की ‘5ई’ रणनीति में इमरजेंसी केयर पर निवेश न्यूनतम है।
दूसरी ओर, जनता द्वारा यातायात नियमों की अनदेखी भी एक बड़ा मुद्दा है। ‘चलता है’ मानसिकता के कारण लोग नियमों को सजावटी मानते हैं। ओवरस्पीडिंग, बिना हेलमेट या सीटबेल्ट के ड्राइविंग, और गलत लेन में चलना आम बात है।
इसके पीछे जागरूकता की कमी, जनसंख्या घनत्व, और सामाजिक दबाव जैसे कारण हैं। यदि कोई रेड लाइट पर रुकता है, तो पीछे से हॉर्न बजते हैं और गालियां सुनने को मिलती हैं।
कानून प्रवर्तन एजेंसियों की सुस्ती भी इस समस्या का एक बड़ा कारण है। ट्रैफिक पुलिस की कमी गंभीर है। ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट के अनुसार, 85,144 ट्रैफिक पुलिस पदों में 30 प्रतिशत और 58,509 कांस्टेबल पदों में 39 प्रतिशत रिक्त हैं।
इन समस्याओं का समाधान आपातकालीन सेवाओं को मजबूत करना, शिक्षा में सुधार, प्रवर्तन को सख्त करना और बुनियादी ढांचे में सुधार करना है। यदि हम नहीं चेते, तो और कितने परिवार बिखरेंगे?