भारत में सत्ता और डर: इंदिरा गांधी से नरेंद्र मोदी तक का सफर
सत्ता का भय और हिंदू समाज
हजार वर्षों की गुलामी का प्रभाव आज भी हमारे समाज में देखा जा सकता है। हिंदू समाज की प्रवृत्तियों में सत्ता का भय स्पष्ट रूप से झलकता है। यह केवल सत्ता से डरने की बात नहीं है, बल्कि यह भी है कि लाल किले के बादशाह या प्रधानमंत्री, जो वहां भाषण देते हैं, सभी की आरती उतारने की प्रवृत्ति भी है। यही कारण है कि 11,000 अंग्रेजों ने भारत पर दो सौ वर्षों तक राज किया। फिर भी, नेहरू, पटेल और श्यामा प्रसाद मुखर्जी की सरकार में अंग्रेजों के तंत्र को समाप्त करने की कोई हिम्मत नहीं थी। उस समय सभी अराजकता और गद्दी के भय में थे।
इंदिरा गांधी का सत्ता का डर
इंदिरा गांधी हमेशा इस डर में रहीं कि उन्हें सत्ता से हटाने की साजिश हो रही है। इस डर ने उन्हें कांग्रेस को कमजोर करने और राजनीति को व्यक्तिगत बनाने पर मजबूर किया। तब भी, उनके मंत्री और संगठन उसी तरह के हुकूमपालक बने रहे जैसे आज नरेंद्र मोदी के सामने उनके मंत्री हैं। मई 2025 में, युद्ध ऑपरेशन के दौरान भी भारतीय सेना के प्रमुख उनके भाषण सुनते रहे।
आपातकाल और भारतीय समाज का व्यवहार
इंदिरा गांधी की इमरजेंसी सत्ता के डर का परिणाम थी। वे विदेशी ताकतों और सीआईए की साजिशों से भयभीत थीं। इस डर ने उन्हें आपातकाल लगाने के लिए मजबूर किया, जिसके बाद भारतीय समाज का व्यवहार ऐसा था कि दुनिया ने देखा कि हिंदुओं में मानवाधिकारों की कोई भावना नहीं है। आपातकाल के बाद की सुबह से ही लोग सन्न और भाग्य भरोसे थे।
प्रतिरोध की कमी
मैं उस समय का साक्षी हूं जब मैं जेएनयू में था। उस समय भी दक्षिणपंथी विचारधारा के लोग थे, लेकिन प्रतिरोध की कमी थी। कुछ ही लोग थे जो सड़कों पर उतरे या जेल गए। अधिकांश लोग माफी मांगकर जेल से बाहर आए।
गांधीवादी अनुशासन का पालन
भारत की सभी संस्थाएं, चाहे वह कैबिनेट हो, पीएमओ, राष्ट्रपति, या मीडिया, सभी इंदिरा गांधी के चरणों में थे। उस समय केवल वैश्विक संस्थाएं ही भारत में लोकतंत्र के खत्म होने की बात कर रही थीं।
मोरारजी देसाई का निर्भीक नेतृत्व
भारत ने मोरारजी देसाई के रूप में एक ऐसा प्रधानमंत्री पाया, जिसने जनता से निर्भीक रहने की अपील की। वे एकमात्र प्रधानमंत्री थे जिन्होंने बिना छलकपट के पद संभाला। मोरारजी ने कहा कि सेना सुरक्षा की गारंटी है, और नागरिकों को चैन की नींद सोनी चाहिए। ऐसे निर्भीक नेता भारत में दुर्लभ रहे हैं।