भारत-यूके मुक्त व्यापार समझौता: महिला उद्यमियों को मिलेगा नया अवसर
भारत और ब्रिटेन के बीच ऐतिहासिक व्यापार समझौता
भारत और ब्रिटेन के बीच लंदन में संपन्न हुए ऐतिहासिक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) ने पारंपरिक भारतीय उत्पादों जैसे कोल्हापुरी चप्पलें, बनारसी और चंदेरी वस्त्रों को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है। यह समझौता भारत के श्रम-प्रधान क्षेत्रों को ब्रिटिश बाजार में रियायती दरों पर निर्यात करने की सुविधा प्रदान करेगा। खास बात यह है कि इन क्षेत्रों में बड़ी संख्या में महिलाएं कार्यरत हैं, जिससे यह समझौता लैंगिक समावेशन को भी बढ़ावा देगा।
प्रधानमंत्रियों की उपस्थिति में समझौते पर हस्ताक्षर
यह व्यापक आर्थिक और व्यापार समझौता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टारमर की उपस्थिति में संपन्न हुआ। अनुमान है कि इस समझौते के परिणामस्वरूप 2030 तक दोनों देशों के बीच व्यापार दोगुना होकर 120 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है।
महिला उद्यमियों को मिलेगा प्रोत्साहन
इस समझौते में भारत ने पहली बार लैंगिक समानता को व्यापार नीति में शामिल किया है। महिला उद्यमियों, व्यापार मालिकों और श्रमिकों को नए व्यापार अवसर प्रदान करने के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। ब्रिटेन सरकार ने इसे एक ऐतिहासिक कदम मानते हुए कहा कि यह महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाएगा और व्यापार के माध्यम से लैंगिक समानता को बढ़ावा देगा।
टैरिफ में बड़ी कटौती
इस समझौते के तहत भारत अपने कई उत्पादों पर आयात शुल्क में 90 प्रतिशत तक की कटौती करेगा, जिससे ब्रिटेन के उत्पादों पर औसत टैरिफ 15 प्रतिशत से घटकर 3 प्रतिशत रह जाएगा। इसके बदले में, ब्रिटेन भारत से आने वाले अधिकांश उत्पादों को शुल्क मुक्त प्रवेश देगा, जिसमें बनारसी साड़ियाँ, चंदेरी कपड़े और कोल्हापुरी जैसे पारंपरिक जूते शामिल हैं।
भारतीय कारीगरों को मिलेगा सम्मान
यह समझौता केवल व्यापार को ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा को भी सुनिश्चित करेगा। इससे भारतीय शिल्पकारों को वैश्विक स्तर पर उचित श्रेय और पारिश्रमिक मिलेगा, जो अब तक पश्चिमी फैशन उद्योग द्वारा उपेक्षित रहा है। हाल ही में प्रादा द्वारा कोल्हापुरी चप्पलों के डिज़ाइन के उपयोग का विवाद इसका उदाहरण है, जिसमें भारतीय विरासत को बिना श्रेय उपयोग किया गया।
आत्मनिर्भरता को मिलेगा बढ़ावा
यह समझौता महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण, रोजगार सृजन और कारीगरों की आय वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इससे भारत श्रम-प्रधान उत्पादों का वैश्विक आपूर्तिकर्ता बन सकेगा और 'ब्रांड इंडिया' को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान मिलेगी.