भारत विभाजन का वास्तविक इतिहास: एक नई दृष्टि
भारत विभाजन का संक्षिप्त विवरण
भारत के विभाजन का सच्चा इतिहास केवल तीन वाक्यों में समाहित है: मुस्लिम लीग ने इसकी मांग की, कांग्रेस ने इसे स्वीकार किया, और अंग्रेजों ने इसे लागू किया। राष्ट्रवादी आंदोलन के नेताओं ने अपने और हिंदू समाज को अंधा बना लिया। बिना किसी तैयारी के, केवल अंग्रेजों को हटाने की चाह ने पंजाब, बंगाल, और कश्मीर में ऐसी स्थिति पैदा की, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। वास्तव में, हिंदू नेताओं ने मुस्लिम लीग, उसके दावों, और जिन्ना पर कभी गंभीरता से विचार नहीं किया।
हिंदू नेताओं की भूमिका
हिंदू नेता विभाजन का दोष अंग्रेजों पर डालते रहे हैं, जबकि उन्होंने इस्लामी विचारधारा और उसके नेताओं को जिम्मेदार ठहराने से बचने की कोशिश की। जिन मौलाना आजाद और देवबंदियों को राष्ट्रवादी बताया गया, उन्होंने स्पष्ट रूप से इस्लामी शासन की इच्छा व्यक्त की थी। विभाजन के बाद भी, हिंदू नेताओं ने भारत में बचे मुसलमानों के साथ इस्लामी संस्थानों को बनाए रखा।
ब्रिटिश सरकार की भूमिका
ब्रिटिश सरकार ने जिन्ना की मांग को कई वर्षों तक ठुकराया और स्वतंत्रता के लिए संविधान सभा का गठन किया। कांग्रेस के हिंदू नेताओं ने धैर्य नहीं रखा और विभाजन का निर्णय लिया। यह तथ्य है कि ब्रिटिश शासक जिम्मेदार और ईमानदार थे, जिन्होंने भारत को एकीकृत करने का प्रयास किया।
विभाजन की वास्तविकता
लोहिया की पुस्तक 'गिल्टी मेन ऑफ इन्डियाज पार्टीशन' से यह स्पष्ट होता है कि नेहरू और पटेल विभाजन के लिए तैयार थे। माउंटबेटन ने केवल विभाजन का कार्यान्वयन किया। हिंदू नेताओं ने इस प्रक्रिया का दोष अंग्रेजों पर डालकर एक झूठा इतिहास रचा है।
निष्कर्ष
भारत विभाजन का सही विवरण यह है कि मुस्लिम लीग ने इसकी मांग की, कांग्रेस ने इसे स्वीकार किया, और अंग्रेजों ने इसे लागू किया। हिंदू नेताओं ने अपने अतीत की गलतियों को स्वीकार करने के बजाय दूसरों को दोषी ठहराया है।