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भिवानी में हिंदी दिवस पर भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन

भिवानी में हिंदी दिवस के अवसर पर वैश्य महाविद्यालय में एक भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में कई सुप्रसिद्ध कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। प्राचार्य डॉ. संजय गोयल ने विद्यार्थियों को हिंदी भाषा और साहित्य के संवाहक बनने की प्रेरणा दी। कवियों ने अपनी रचनाओं से जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डाला। इस आयोजन ने साहित्य की समृद्ध परंपरा को आगे बढ़ाने का कार्य किया।
 

हिंदी दिवस पर कवि सम्मेलन


भिवानी। हिंदी दिवस के अवसर पर वैश्य महाविद्यालय, भिवानी के हिंदी विभाग और साहित्य सुरभि प्रकोष्ठ द्वारा एक भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।


कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. संजय गोयल ने की। आयोजन सचिव डॉ. कामना कौशिक और हिंदी विभाग के प्रमुख डॉ. अनिल तंवर ने इस कार्यक्रम का संयोजन किया। कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती के चित्र पर दीप प्रज्वलन और सरस्वती वंदना से हुई।


विद्यार्थियों को हिंदी के संवाहक बनने की प्रेरणा

कवि सम्मेलन में वैश्य महाविद्यालय ट्रस्ट के अध्यक्ष एडवोकेट शिवरतन गुप्ता, प्रबंधक समिति के कोषाध्यक्ष बृजलाल सर्राफ, और ट्रस्टी विजय किशन अग्रवाल सहित कई प्रमुख अतिथि उपस्थित रहे। सभी ने इस साहित्यिक आयोजन की सराहना की और विद्यार्थियों को हिंदी भाषा और साहित्य के संवाहक बनने के लिए प्रेरित किया। प्राचार्य डॉ. संजय गोयल ने कहा कि साहित्यकार समाज में शौर्य और जीवन के मूल्यों को जीवित रख सकते हैं।


विद्यार्थियों को कवियों की रचनाओं से जीवन की महत्वपूर्ण सीखें प्राप्त होती हैं।


कवियों की रचनाओं ने छाया जादू

एडवोकेट शिवरतन गुप्ता ने कहा कि आधुनिकता के युग में कला और साहित्य को जीवित रखना कवियों का महत्वपूर्ण कार्य है। कोषाध्यक्ष बृजलाल सर्राफ और ट्रस्टी विजय किशन अग्रवाल ने कहा कि कवि शब्दों को मोतियों की माला में पिरोने वाले सच्चे साधक होते हैं।


सम्मेलन में सुप्रसिद्ध कवि विजेंद्र गाफिल ने अपनी शायरी पेश की:


“कोई आए या ना आए यह मर्जी उसी की,
मेरी आदत सी है कमतर देखने की,
मंजिल मुश्किल है फिर भी नामुमकिन तो नहीं,
हमने कागज के फूलों पर तितलियों को खुशबु लेते देखा है।”


कवि प्रो. श्याम वशिष्ठ ने अपनी ग़ज़ल से महफ़िल को रंगीन किया:


“मोहब्बत की निशानी को यहां पर कौन देखेगा,
बुजुर्गों की कहानी को यहां पर कौन देखेगा,
तेरी आंखों का दीवाना हुआ है यह सारा जहां,
मेरी आंखों के पानी की यहां पर कौन देखेगा।”


कवि डॉ. हरिकेश पंघाल ने अपनी रचना “पहला सुख निरोगी काया” के माध्यम से मानव जीवन की महत्ता का सुंदर चित्रण किया। उनकी हरियाणवी कविता “चिचड़” ने भ्रष्टाचार पर करारा प्रहार किया, जिससे श्रोताओं ने जोरदार तालियां बटोरीं।


साहित्यकारों का दायित्व

कार्यक्रम में उपस्थित सभी कवियों को साहित्य सुरभि शिखर सम्मान से सम्मानित किया गया। समापन पर हिंदी विभाग के प्रमुख डॉ. अनिल तंवर ने कहा कि साहित्यकारों का दायित्व है कि वे साहित्य और कला को जीवित रखें, और यह दायित्व उन्हें समाज में आदर का पात्र बनाता है।