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भोपाल के नवाब की संपत्ति विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले पर लगाई रोक

भोपाल के अंतिम नवाब हमीदुल्लाह खान की संपत्ति से जुड़े विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी है। यह मामला 1999 से चल रहा है, जिसमें नवाब के परिवार के सदस्यों ने संपत्ति के बंटवारे की मांग की थी। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को रद्द कर दिया था, जिसके बाद याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। अब इस मामले की अगली सुनवाई तक उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लग गई है, जिससे यह मामला फिर से चर्चा का विषय बन गया है।
 

सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल के अंतिम नवाब हमीदुल्लाह खान की संपत्ति से संबंधित एक पुराने मामले में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के निर्णय पर अंतरिम रोक लगा दी है। उच्च न्यायालय ने इस संपत्ति विवाद को पुनः निचली अदालत में सुनवाई के लिए भेजा था, जिसे अब सर्वोच्च न्यायालय ने चुनौती के आधार पर स्थगित कर दिया है। यह याचिका नवाब के बड़े भाई के वंशज उमर फारुक अली और राशिद अली द्वारा दायर की गई थी.


संपत्ति के उत्तराधिकार का विवाद

इस मामले की शुरुआत 1999 में दाखिल एक दीवानी वाद से हुई थी, जिसमें नवाब के विस्तारित परिवार ने संपत्ति के उचित बंटवारे की मांग की थी। इसमें नवाब की बेटी साजिदा सुल्तान और उनके पुत्र मंसूर अली खान पटौदी (पूर्व क्रिकेट कप्तान) के साथ-साथ सैफ अली खान, सोहा अली खान, सबा अली खान और शर्मिला टैगोर जैसे प्रसिद्ध परिवार के सदस्य शामिल हैं। निचली अदालत ने 2000 में साजिदा सुल्तान के पक्ष में फैसला सुनाते हुए संपत्ति को मुस्लिम पर्सनल लॉ के अधीन नहीं माना और उन्हें वैध उत्तराधिकारी घोषित किया।


संविधान और उत्तराधिकार का टकराव

वादियों का तर्क था कि नवाब की संपत्ति मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत सभी उत्तराधिकारियों में बांटी जानी चाहिए, जबकि प्रतिवादी पक्ष ने 1962 में भारत सरकार द्वारा जारी एक प्रमाण पत्र का हवाला दिया, जिसमें साजिदा सुल्तान को नवाब की उत्तराधिकारी और संपत्ति की मालिक घोषित किया गया था। यह प्रमाण पत्र अनुच्छेद 366(22) के तहत जारी हुआ था, जिससे उन्हें संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त थी।


उच्च न्यायालय के निर्णय पर रोक

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए मामले को वापस सुनवाई के लिए भेज दिया था। याचिकाकर्ताओं ने इसे सीपीसी के प्रावधानों के खिलाफ बताया और सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग की। अब सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई तक उच्च न्यायालय के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है, जिससे यह मामला फिर से कानूनी बहस का केंद्र बन गया है.