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मणिपुर में जातीय तनाव: मोदी की यात्रा के बावजूद स्थिति में सुधार नहीं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मणिपुर दौरे के बाद भाजपा का तंत्र सब कुछ ठीक होने का दावा कर रहा है, लेकिन वास्तविकता यह है कि कुकी और मैती समुदायों के बीच जातीय तनाव अभी भी बना हुआ है। दोनों समुदाय अपनी पुरानी स्थिति पर अड़े हुए हैं, जिससे कोई भी राजनीतिक निर्णय प्रभावी नहीं हो पा रहा है। मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू है और विधानसभा निलंबित है, जिससे एक लोकप्रिय सरकार का गठन चुनौतीपूर्ण हो गया है। कुकी समुदाय ने सुझाव दिया है कि उन्हें मणिपुर से अलग करके एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाए, लेकिन यह निर्णय भी आसान नहीं होगा।
 

प्रधानमंत्री मोदी का मणिपुर दौरा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया मणिपुर दौरे के बाद, भाजपा का तंत्र यह संदेश दे रहा है कि सब कुछ ठीक हो गया है। हालांकि, वास्तविकता यह है कि प्रधानमंत्री की यात्रा के बावजूद, जातीय हिंसा में उलझे समुदायों के बीच कोई ठोस सुधार नहीं हुआ है। कुकी और मैती समुदाय अपनी पुरानी स्थिति पर कायम हैं। यदि वे अपनी स्थिति नहीं छोड़ते हैं, तो कोई भी निर्णय प्रभावी नहीं हो सकेगा। कुकी समुदाय पहाड़ी क्षेत्रों में और मैती घाटी में बसे हुए हैं, और वे एक-दूसरे के क्षेत्रों में नहीं जाते। पहचान के आधार पर वे एक-दूसरे पर हमले करते हैं। हालाँकि हाल के दिनों में हिंसा में कमी आई है, लेकिन दोनों समुदायों के बीच विश्वास की कमी बनी हुई है।


राजनीतिक स्थिति और संभावनाएँ

मणिपुर में वर्तमान में राष्ट्रपति शासन लागू है और विधानसभा को निलंबित रखा गया है, जिसका उद्देश्य एक लोकप्रिय सरकार का गठन करना है। लेकिन यह स्पष्ट है कि मैती समुदाय की बहुसंख्या के कारण मुख्यमंत्री मैती ही बनेगा, भले ही एन बीरेन सिंह को फिर से नहीं चुना जाए। ऐसे में कुकी समुदाय का विश्वास लौटाना कठिन होगा। गैर-कुकी और गैर-मैती मुख्यमंत्री बनाने के प्रयास भाजपा के लिए जोखिम भरे साबित हो सकते हैं। इसलिए, एक लोकप्रिय सरकार का गठन करना चुनौतीपूर्ण है, और यदि सरकार बन भी गई, तो मौजूदा शांति को बनाए रखना मुश्किल होगा। कुकी समुदाय ने प्रधानमंत्री मोदी को सुझाव दिया है कि उन्हें मणिपुर से अलग करके पहाड़ी क्षेत्र में एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाए। हाल ही में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विभाजन कर लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया है। यदि ऐसा किया जाता है, तो दोनों समुदायों के बीच राजनीतिक विवाद कम हो सकता है। इसके बाद सामाजिक विभाजन को समाप्त करने का प्रयास किया जा सकता है। लेकिन राज्य का विभाजन भी एक सरल निर्णय नहीं होगा, खासकर जब मणिपुर में डेढ़ साल बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।