ममता बनर्जी ने हिंदी भाषियों के प्रति सम्मान जताया, शुरू किया भाषा आंदोलन
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भाषाई सम्मान का संदेश
नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने स्पष्ट किया है कि उन्होंने कभी भी हिंदी बोलने वालों को राज्य से बाहर नहीं निकाला। बोलपुर में एक जनसभा के दौरान उन्होंने कहा कि बंगाल में सभी भाषाओं का सम्मान किया जाता है। ममता ने कहा कि उन्होंने कभी हिंदी भाषियों से नहीं कहा कि वे बंगाल छोड़ दें।
मुख्यमंत्री ने बीजेपी शासित राज्यों का उल्लेख करते हुए बांग्ला भाषा के प्रति अपने समर्थन को दोहराया। उन्होंने कहा कि राजस्थान, गुजरात, असम, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बंगाली बोलने वालों को निशाना बनाया जा रहा है। इसके साथ ही, उन्होंने भाषा आंदोलन की शुरुआत की घोषणा की और कहा कि वे बंगाल में एनआरसी लागू नहीं होने देंगी। उन्होंने कहा कि वे अपनी भाषा की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाएंगी।
भाषाई विभाजन का विरोध
बोलपुर में अपने संबोधन में ममता ने कहा कि वे भाषा के आधार पर विभाजन नहीं चाहतीं। उन्होंने कहा कि वे किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं हैं और विविधता में एकता को राष्ट्र की नींव मानती हैं। ममता ने यह भी कहा कि बांग्ला दुनिया में पांचवीं और एशिया में दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है, फिर भी बंगालियों पर अत्याचार हो रहा है। उन्होंने सवाल किया कि अगर बंगाल 1.5 करोड़ प्रवासी श्रमिकों को आश्रय दे सकता है, तो अन्य राज्यों में काम करने वाले 22 लाख बंगाली प्रवासियों को क्यों नहीं स्वीकार किया जा सकता।
प्रधानमंत्री पर निशाना
ममता ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण का संदर्भ देते हुए आरोप लगाया कि केंद्र सरकार चुनाव आयोग के माध्यम से एनआरसी लागू करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने केंद्र को चुनौती दी कि वे पश्चिम बंगाल में एनआरसी लागू नहीं होने देंगी। ममता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी निशाना साधते हुए सवाल किया कि क्या उन्होंने मालदीव के राष्ट्रपति से गले मिलते समय उनका धर्म पूछा था। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र ने बंगाल को उसका बकाया नहीं दिया, जबकि पड़ोसी देश को 5,000 करोड़ रुपये दान किए।