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महात्मा गांधी और नारायण गुरु की ऐतिहासिक मुलाकात: जाति व्यवस्था पर महत्वपूर्ण चर्चा

1925 में महात्मा गांधी और नारायण गुरु के बीच हुई ऐतिहासिक मुलाकात ने जाति व्यवस्था और सामाजिक एकता पर महत्वपूर्ण चर्चा की। इस भेंट में दोनों नेताओं ने अस्पृश्यता और जाति के विभाजन के खिलाफ अपने विचार साझा किए। गांधीजी ने जाति को कर्म और कर्तव्य से जोड़ा, जबकि गुरु ने इसे एक कृत्रिम विभाजन बताया। यह मुलाकात भारत में सामाजिक सुधारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुई। जानें इस ऐतिहासिक भेंट के बारे में और इसके प्रभावों के बारे में।
 

1925 की ऐतिहासिक भेंट

भारत के इतिहास में कुछ महत्वपूर्ण मुलाकातें ऐसी हैं, जिन्होंने समाज को नई दिशा दी। इनमें से एक 1925 में केरल के वर्कला में स्थित शिवगिरी मठ में हुई थी, जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने महान समाज सुधारक और आध्यात्मिक नेता श्री नारायण गुरु से भेंट की। इस मुलाकात में जाति-व्यवस्था, सामाजिक एकता और अस्पृश्यता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर गहन चर्चा हुई। गांधीजी के साथ उनके मित्र और सहयोगी सी.एफ. एंड्रयूज भी उपस्थित थे।


बातचीत के दौरान, दोनों महान विभूतियों ने जाति व्यवस्था पर अपने विचार साझा किए। महात्मा गांधी का मानना था कि जाति व्यवस्था जन्म से नहीं, बल्कि कर्म और कर्तव्य से निर्धारित होती है। उन्होंने कहा कि यदि कोई व्यक्ति अपने कर्तव्य को सही तरीके से निभाता है, तो वह उस जाति का सदस्य माना जा सकता है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि विभिन्न जातियों के लोग एक-दूसरे के साथ भोजन या विवाह करें, लेकिन दिलों की शुद्धता अधिक महत्वपूर्ण है।


वहीं, श्री नारायण गुरु का दृष्टिकोण स्पष्ट था। उन्होंने जाति को एक कृत्रिम विभाजन बताया जो मानवता को बांटता है और इसे समाप्त करने की आवश्यकता पर जोर दिया। गुरु ने कहा कि जब सभी लोग एक ही प्रजाति के हैं, तो जाति का विभाजन क्यों? उन्होंने अंतर-जातीय भोजन और विवाह को सामाजिक एकता और समानता के लिए आवश्यक बताया।


यह वही समय था जब गुरु ने अपना प्रसिद्ध उद्घोष दिया: "एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर मनुष्य के लिए।" गांधीजी ने गुरु के विचारों और उनके जन-कल्याण के कार्यों की सराहना की। उन्होंने शिवगिरी मठ की व्यवस्था और गुरु के आश्रम जीवन की भी प्रशंसा की। दोनों नेताओं ने अस्पृश्यता को समाज का अभिशाप मानते हुए इसकी कड़ी निंदा की। यह मुलाकात केवल दो महान व्यक्तियों का मिलन नहीं थी, बल्कि यह भारत में सामाजिक सुधारों और जाति-विहीन समाज की स्थापना की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुई, जिसने आने वाली पीढ़ियों को समानता और भाईचारे के लिए प्रेरित किया।