महिलाओं के मातृत्व अवकाश को मौलिक अधिकार मानने वाला ऐतिहासिक सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि मातृत्व अवकाश केवल एक विशेषाधिकार नहीं है, बल्कि यह हर कार्यरत महिला का मौलिक अधिकार है। न्यायालय ने मद्रास हाई कोर्ट के पूर्व के निर्णय को पलटते हुए बताया कि मातृत्व और मातृत्व देखभाल संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और सम्मान के अधिकार का एक अभिन्न हिस्सा हैं। भारतीय औद्योगिक प्रबंधन परिषद (ICIM) के अध्यक्ष सतेंद्र सिंह ने इस निर्णय को “महिलाओं के संवैधानिक और मानवाधिकारों की शानदार पुष्टि” बताया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले की एक सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल की शिक्षिका से जुड़ा है। 2017 में तलाक के बाद उन्हें अपने दो बच्चों की कस्टडी मिली थी। 2018 में पुनर्विवाह के बाद, 2021 में उनके तीसरे बच्चे के जन्म पर मातृत्व अवकाश की मांग की गई, जिसे तमिलनाडु शिक्षा विभाग ने खारिज कर दिया। इसका कारण यह बताया गया कि राज्य के नियमों के अनुसार, दो से अधिक बच्चों वाली महिलाओं को मातृत्व लाभ नहीं मिल सकता। मद्रास हाई कोर्ट ने भी इस निर्णय को बरकरार रखा था।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि मातृत्व अवकाश का अधिकार महिलाओं के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार में निहित है। दो से अधिक बच्चों के आधार पर मातृत्व अवकाश से वंचित करना मनमाना है। राज्य संकीर्ण प्रशासनिक नियमों के माध्यम से महिलाओं के स्वास्थ्य और मातृत्व अधिकार का हनन नहीं कर सकता।
ICIM अध्यक्ष का बयान
सतेंद्र सिंह ने कहा, “यह निर्णय भारत की कार्यरत महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह न केवल महिलाओं के कानूनी अधिकारों को मजबूत करता है, बल्कि आधुनिक समाज में मातृत्व की विकसित समझ को भी दर्शाता है। मातृत्व एक पवित्र जिम्मेदारी है, कोई सांख्यिकीय सीमा नहीं।” उन्होंने यह भी कहा कि ICIM उद्योगों और HR पेशेवरों में इस निर्णय के प्रति जागरूकता फैलाएगा।
फैसले का प्रभाव
अब दो से अधिक बच्चों वाली महिलाओं को स्वचालित रूप से मातृत्व अवकाश से वंचित नहीं किया जाएगा। नियोक्ताओं को व्यक्तिगत परिस्थितियों पर विचार करना होगा।