मातृ नवमी: पितृ पक्ष का विशेष दिन और इसका महत्व
मातृ नवमी का महत्व
पितृ पक्ष वह अवधि है जब हम अपने दिवंगत पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। इस 15 दिवसीय समय में हर दिन का अपना विशेष महत्व होता है, लेकिन नवमी का दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इसे 'मातृ नवमी' के नाम से जाना जाता है, जो हमारी माताओं, दादियों, नानियों और परिवार की सभी महिलाओं को समर्पित है। यह अवसर हमें उन महिलाओं के प्रति सम्मान और प्रेम व्यक्त करने का मौका देता है, जिन्होंने हमारे परिवार को एकजुट रखा और हमें अच्छे संस्कार दिए।मातृ नवमी का दिन विशेष रूप से उन सभी सुहागिन महिलाओं के श्राद्ध के लिए होता है, जिनका निधन हो चुका है। इस दिन श्रद्धा से श्राद्ध करने से दिवंगत माताओं की आत्मा को शांति मिलती है और उनका आशीर्वाद परिवार पर बना रहता है। यदि किसी माँ की मृत्यु की तिथि याद नहीं है, तो मातृ नवमी के दिन उनका श्राद्ध किया जा सकता है, जिससे घर में सुख और समृद्धि आती है।
नवमी के दिन किनका श्राद्ध किया जाता है?
मातृ नवमी केवल माताओं के लिए ही नहीं, बल्कि अन्य पूर्वजों के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है:
- जिनकी मृत्यु किसी भी महीने की नवमी तिथि को हुई हो।
- जिनकी मृत्यु की सही तारीख परिवार को याद नहीं है।
- ऐसे पूर्वज जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो, जैसे दुर्घटना या हिंसा में।
पितरों को याद करने की विधि
मातृ नवमी के दिन श्राद्ध की प्रक्रिया सरल और श्रद्धा पर आधारित होती है। सुबह उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके बैठें और जल लेकर संकल्प लें कि आप अपनी माँ या परिवार की अन्य महिलाओं के लिए श्राद्ध कर रहे हैं।
इसके बाद, घर पर एक ब्राह्मण को बुलाकर उन्हें भोजन कराएं। भोजन सात्विक होना चाहिए, जिसमें खीर-पूड़ी का विशेष महत्व है। भोजन के बाद ब्राह्मण को अपने सामर्थ्य के अनुसार कपड़े और दक्षिणा दें। अंत में, गाय, कुत्ते और कौए के लिए भी भोजन का एक हिस्सा निकालें। ऐसा माना जाता है कि इनके माध्यम से दिया गया अन्न हमारे पितरों तक पहुँचता है।