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मालेगांव बम धमाका मामले में आरोपियों को मिली बरी करने की राहत

2008 के मालेगांव बम धमाके के मामले में एनआईए की विशेष अदालत ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और अन्य आरोपियों को बरी कर दिया है। अदालत ने अभियोजन पक्ष की लापरवाही और गवाहों के गायब होने के कारण यह निर्णय लिया। जानें इस मामले में क्या हुआ और अदालत ने किस आधार पर आरोपियों को बरी किया।
 

मालेगांव बम धमाका मामला

मालेगांव बम धमाका मामला: 2008 के मालेगांव बम विस्फोट के मामले में एनआईए की विशेष अदालत ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सात आरोपियों को बरी कर दिया है। अदालत के इस निर्णय का मुख्य आधार अभियोजन पक्ष द्वारा सबूतों के प्रबंधन में की गई गंभीर लापरवाही और महत्वपूर्ण गवाहों के बयान का गायब होना रहा।


अभियोजन पक्ष की स्थिति

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अदालत ने यह पाया कि अभियोजन पक्ष ने जिन 13 गवाहों के बयान मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज कराए थे, उनकी मूल प्रतियां पेश नहीं की गईं। ये गवाह उन कथित साजिश बैठकों में शामिल होने की जानकारी देते थे, जिनमें 'मुसलमानों से बदला', 'हिंदू राष्ट्र के लिए अलग संविधान', 'भगवा झंडा' और 'इज़राइल और थाईलैंड में निर्वासित हिंदू सरकार' जैसे विचार व्यक्त किए गए थे। हालांकि, इनमें से दो गवाहों ने बाद में अपने बयान बदलते हुए कहा कि उनसे एटीएस ने जबरन बयान दिलवाए थे।


गवाहों की स्थिति

अभियोजन की स्थिति: मुकदमे के दौरान कुल 39 गवाह मुखबिर बनकर मुकर गए, जिससे अभियोजन की स्थिति और कमजोर हो गई। अप्रैल 2016 में यह खुलासा हुआ कि इन गवाहों के महत्वपूर्ण बयानों की मूल प्रतियां अदालत के रिकॉर्ड से गायब हैं। कई प्रयासों के बावजूद भी दस्तावेज नहीं मिले। नवंबर 2016 में एटीएस ने अदालत को बताया कि उसके पास कुछ बयानों की प्रमाणित फोटोकॉपी है और इन्हें द्वितीयक साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति मांगी।


बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती

बॉम्बे हाईकोर्ट में इस आदेश को चुनौती: 2 जनवरी 2017 को विशेष अदालत ने अभियोजन को इन प्रतियों का उपयोग करने की इजाजत दे दी, लेकिन आरोपी समीर कुलकर्णी ने बॉम्बे हाईकोर्ट में इस आदेश को चुनौती दी। 2019 में हाईकोर्ट ने पाया कि प्रस्तुत की गई फोटोकॉपी को मूल दस्तावेज से मिलान नहीं किया गया और यह प्रमाणित नहीं था कि ये मूल से तैयार की गई हैं। हाईकोर्ट ने अभियोजन को नई अर्जी दायर कर प्रमाणिकता की जांच करने का आदेश दिया।


अपर्याप्त सबूत

आरोपियों के खिलाफ नहीं मिले पर्याप्त सबूत: विशेष अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष ने न तो नई अर्जी दी, न ही प्रमाणिकता की कोई जांच कराई। उन्होंने ट्रायल में गवाहों से केवल इतना पूछा कि क्या उनके बयान मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज हुए थे। गवाहों ने हां कहा, लेकिन अदालत ने इसे अपर्याप्त माना। इस प्रकार सबूतों की कमी, गायब दस्तावेज, और कमजोर गवाही ने अदालत को इस निष्कर्ष पर पहुंचाया कि अभियोजन आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत पेश नहीं कर सका।