मिग-21 लड़ाकू विमान ने छह दशक बाद चंडीगढ़ में भरी अंतिम उड़ान
मिग-21 का ऐतिहासिक सफर
नई दिल्ली। भारतीय वायुसेना का मिग-21 लड़ाकू विमान ने शुक्रवार को चंडीगढ़ में अपनी अंतिम उड़ान भरी, जो कि छह दशकों की सेवा का समापन है। इस विमान के साथ उड़ान भरने वाले स्क्वाड्रन लीडर एसएस त्यागी ने 1971 के युद्ध में इसकी भूमिका को महत्वपूर्ण बताया, जिसमें उन्होंने इसे जीत का 80 प्रतिशत श्रेय दिया। उन्होंने कहा कि इस विमान ने युद्ध के दौरान रॉकेट और तोपखाने का प्रदर्शन किया और बम गिराए। उन्होंने अपने कनिष्ठ पायलटों को भी प्रशिक्षण दिया, जिससे उनके उड़ान के घंटे बढ़ते गए।
स्क्वाड्रन लीडर एसएस त्यागी ने बताया कि 1965 में उनके पास सीमित विमान थे, लेकिन मिग-21 ने 1971 के युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसने ढाका में कई लक्ष्यों को सफलतापूर्वक निशाना बनाया। सेवानिवृत्त कैप्टन मलिक ने कहा कि इस विमान को विदाई देना उनके लिए एक भावुक क्षण था, क्योंकि यह उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है। उन्होंने कहा कि उन्होंने लगभग 24 वर्षों तक मिग-21 के सभी संस्करण उड़ाए हैं। यह विमान अपने पीछे एक अद्वितीय सेवा और विरासत छोड़ गया है, जिसे नई पीढ़ी के लड़ाकू विमानों के विकास के दौरान याद किया जाएगा।
मिग-21 की युद्ध प्रभावशीलता
1963 में भारतीय वायुसेना में शामिल होने के बाद, मिग-21 ने लगभग छह दशकों तक सेवा की और भारत की वायु शक्ति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना रहा। चंडीगढ़ में स्थापित पहली स्क्वाड्रन को 'फर्स्ट सुपरसोनिक्स' नाम दिया गया था। इस विमान ने कई अभियानों में भाग लिया, जिसमें 1971 का युद्ध भी शामिल है, जहां इसने अपनी युद्ध प्रभावशीलता साबित की। मिग-21 ने ढाका में राज्यपाल के आवास पर हमला किया, जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण किया। इसने कई दुश्मन विमानों को भी नष्ट किया, जिससे यह भारतीय वायुसेना के इतिहास में सबसे अधिक युद्ध-परीक्षणित जेट विमानों में से एक बन गया।