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मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई का आरक्षण पर महत्वपूर्ण बयान

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने आरक्षण में क्रीमीलेयर को शामिल न करने का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि आईएएस अधिकारियों के बच्चों की स्थिति गरीब किसानों के बच्चों से भिन्न है। इसके अलावा, उन्होंने संविधान की जीवंतता और सामाजिक न्याय की आवश्यकता पर भी विचार व्यक्त किए। जानें उनके विचारों की गहराई और डॉ. आंबेडकर के दृष्टिकोण के बारे में।
 

आरक्षण में क्रीमीलेयर का मुद्दा

देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा कि वह अनुसूचित जातियों के आरक्षण में क्रीमीलेयर को शामिल करने के खिलाफ हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि आईएएस अधिकारियों के बच्चों की स्थिति गरीब किसानों के बच्चों से भिन्न है। गवई ने यह भी बताया कि न्यायाधीशों से उनके निर्णयों को सही ठहराने की अपेक्षा नहीं की जाती है और उनकी सेवानिवृत्ति में केवल एक सप्ताह शेष है। उनका मानना है कि क्रीमीलेयर को अलग रखा जाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि गवई ने 2024 में कहा था कि राज्यों को अनुसूचित जातियों (एससी) और जनजातियों (एसटी) के बीच क्रीमीलेयर की पहचान के लिए नीतियां बनानी चाहिए।


संविधान की जीवंतता पर विचार

मुख्य न्यायाधीश ने भारतीय संविधान की स्थिरता पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि डॉ. बीआर आंबेडकर का मानना था कि संविधान को विकासशील और जीवंत दस्तावेज होना चाहिए। अनुच्छेद 368 संविधान में संशोधन की प्रक्रिया को दर्शाता है। गवई ने बताया कि संविधान में संशोधन करने की शक्तियां कभी-कभी बहुत उदार होती हैं, जबकि कुछ संशोधनों के लिए आधे राज्यों और संसद के दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि संविधान सभा में डॉ. आंबेडकर का भाषण कानून के छात्रों के लिए महत्वपूर्ण है।


सामाजिक न्याय की आवश्यकता

गवई ने यह भी कहा कि संविधान सभा में डॉ. आंबेडकर ने स्पष्ट किया था कि दलितों और पिछड़ों के अधिकारों की रक्षा के लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि पिछड़ों और दलितों को न्याय तब तक नहीं मिल सकता जब तक उनकी समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जाता। डॉ. आंबेडकर ने सभी पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण की सिफारिश की थी। उन्होंने कहा कि असमान लोगों के साथ समानता का व्यवहार केवल उपेक्षा का दूसरा नाम है।


आरक्षण का मानवता से संबंध

आरक्षण की व्यवस्था न केवल मानवीय आधार पर है, बल्कि यह संविधान की प्रस्तावना में दिए गए सामाजिक न्याय के अधिकार से भी प्रेरित है। जैसे एक माता अपने कमजोर बच्चे की देखभाल करती है, समाज को भी कमजोर वर्गों की बाधाओं को दूर करना चाहिए। डॉ. अम्बेडकर के अनुसार, अनुसूचित जातियों, जनजातियों और पिछड़ी जातियों का सामाजिक और आर्थिक उत्थान ही आरक्षण का मुख्य उद्देश्य था। उन्होंने आरक्षण की अवधि 10 वर्ष निर्धारित की थी। मुख्य न्यायाधीश गवई का यह कहना कि जिन परिवारों ने दो पीढ़ियों तक आरक्षण का लाभ लिया है, उन्हें अब रास्ता छोड़ देना चाहिए, एक महत्वपूर्ण विचार है।


सत्य का सामना

मुख्य न्यायाधीश का यह कहना कि एक आईएएस अधिकारी का बच्चा गरीब किसान के बच्चों के बराबर नहीं हो सकता, एक ऐसा सत्य है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।


मुख्य संपादक का संदेश


-इरविन खन्ना, मुख्य संपादक।