मोहन भागवत का आर्थिक विषमता पर बयान: सरकार को बदलाव की आवश्यकता
संघ प्रमुख का भाषण और आर्थिक विषमता
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष के समारोह में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और कूटनीतिक मुद्दों पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने अधिकांश मामलों में सरकार के दृष्टिकोण का समर्थन किया, लेकिन कुछ मुद्दों पर सरकार को सलाह भी दी। सबसे महत्वपूर्ण विषय आर्थिक विषमता का था। भागवत ने कहा, 'हमारे देश को वैश्विक नेता बनाने की आकांक्षा है, लेकिन वर्तमान वैश्विक आर्थिक प्रणाली की कमियों का सामना करना पड़ रहा है। असमानता बढ़ रही है, और आर्थिक शक्ति कुछ लोगों के हाथों में सिमटती जा रही है। अमीर और गरीब के बीच का अंतर भी बढ़ता जा रहा है।'
यह ध्यान देने योग्य है कि भागवत के इस बयान के एक दिन पहले हारुन रिच लिस्ट जारी की गई थी, जिसमें भारत के सबसे धनी व्यक्तियों की सूची थी। इस सूची के अनुसार, भारत के 1,687 व्यक्तियों के पास देश की जीडीपी के आधे के बराबर संपत्ति है।
इससे पहले भी कई रिपोर्टें सामने आई हैं, जो देश में बढ़ती असमानता और संपत्ति के केंद्रीकरण की समस्या को उजागर करती हैं। संघ प्रमुख ने इस मुद्दे को उठाते हुए वैश्विक आर्थिक प्रणाली की खामियों का उल्लेख किया, लेकिन यह भारत सरकार के लिए एक संकेत है कि उसे अपनी आर्थिक नीतियों में बदलाव करना चाहिए ताकि बड़ी जनसंख्या को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया जा सके। सवाल यह है कि क्या नरेंद्र मोदी की सरकार इस सलाह पर ध्यान देगी और चुनिंदा व्यवसायियों के हाथों में संसाधनों के वितरण की नीति को बदलने के लिए तैयार होगी?
भागवत ने नई पीढ़ी के आंदोलन 'जेन जी' के बारे में भी महत्वपूर्ण बातें कीं। उन्होंने बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल में अशांति का उल्लेख करते हुए कहा कि समाज और सरकार के बीच की दूरी और सक्षम प्रशासकों की कमी के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई। इससे सरकार को सबक लेना चाहिए और समाज के साथ जुड़ने का प्रयास करना चाहिए।