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मोहन भागवत का विजयदशमी पर संबोधन: परिवर्तन का मार्ग और हिंदू राष्ट्रीयता

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने विजयदशमी उत्सव पर अपने संबोधन में लोकतांत्रिक तरीकों से परिवर्तन, हिंदू राष्ट्रीयता और स्वदेशी जीवन जीने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हिंसा से कोई स्थायी परिवर्तन नहीं आता और समाज को संगठित होकर अपने विकास के रास्ते को अपनाना चाहिए। भागवत ने वैश्विक आर्थिक प्रणाली पर निर्भरता को खत्म करने की आवश्यकता भी बताई।
 

विजयदशमी उत्सव में संघ प्रमुख का संदेश

नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने विजयदशमी उत्सव के अवसर पर नागपुर में संबोधित करते हुए कहा कि लोकतांत्रिक तरीकों से ही बदलाव संभव है। उन्होंने हिंसा को अस्थायी हल बताते हुए कहा कि हाल के समय में कई देशों में क्रांतियाँ हुईं, लेकिन उनमें से कोई भी बड़ा परिवर्तन नहीं ला सकी। पड़ोसी देशों में हो रही हिंसा हमारे लिए चिंता का विषय है, क्योंकि हमें उनके साथ आत्मीय संबंध बनाए रखने की आवश्यकता है।


भागवत ने यह भी कहा कि जब सरकार जनता से दूर होती है और उनकी समस्याओं को नजरअंदाज करती है, तो लोग सरकार के खिलाफ हो जाते हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि इस तरह की नाखुशी का प्रदर्शन किसी के लिए भी फायदेमंद नहीं होता। इतिहास में देखे तो राजनीतिक क्रांतियों ने कभी भी अपने लक्ष्यों को पूरा नहीं किया है। हिंसक प्रदर्शनों से केवल बाहरी शक्तियों को लाभ होता है।


उन्होंने कहा कि 'आज पूरी दुनिया में अराजकता का माहौल है। ऐसे समय में भारत की युवा पीढ़ी में अपने देश और संस्कृति के प्रति प्रेम बढ़ा है। समाज अब खुद समस्याओं का समाधान करने की कोशिश कर रहा है। बुद्धिजीवियों में भी देश की भलाई के लिए चिंतन बढ़ रहा है।'


नैतिक विकास की आवश्यकता

भागवत ने कहा कि 'मानव का भौतिक विकास तो हो रहा है, लेकिन नैतिक विकास की आवश्यकता है। आज अमेरिका को आदर्श माना जाता है, लेकिन इसके लिए और भी संसाधनों की आवश्यकता होगी। हमारी दृष्टि भौतिकता के साथ-साथ मानवता के विकास की भी है। दुनिया फिर से भारत से मार्गदर्शन की अपेक्षा कर रही है।'


संघ प्रमुख ने कहा कि 'संघ ने 100 साल पूरे कर लिए हैं। स्वयंसेवक और समाज के अनुभव संघ का चिंतन है। हमें धीरे-धीरे परिवर्तन लाना होगा और अपने विकास के रास्ते को दुनिया के सामने रखना होगा। धर्म का अर्थ केवल पूजा नहीं है, बल्कि यह सभी का कल्याण करने वाला होना चाहिए।'


स्वदेशी जीवन की आवश्यकता

उन्होंने कहा कि 'वर्तमान आर्थिक प्रणाली में कुछ दोष हैं। हमें इस पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहिए। हमें स्वदेशी और आत्मनिर्भर जीवन जीने की आवश्यकता है। साथ ही, हमें वैश्विक संबंध भी बनाए रखने होंगे, लेकिन उन पर निर्भरता नहीं होनी चाहिए।'


हिंदू राष्ट्रीयता का महत्व

भागवत ने कहा कि 'हिंदू राष्ट्रीयता सभी विविधताओं को एक सूत्र में पिरोती है। हमारी संस्कृति राष्ट्र बनाती है। हमने कई आक्रमण झेले हैं, लेकिन सनातन संस्कृति आज भी जीवित है। संघ हिंदू समाज को संगठित करने का कार्य कर रहा है। एक बार समाज संगठित हो गया तो वह अपने बल पर सभी कार्य कर सकता है।'