राजद की बैठक में चुनावी रणनीतियों पर चर्चा, मनोज झा ने साझा की जानकारी
राजद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख नेता और राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा ने शुक्रवार को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी। उन्होंने बताया कि यह बैठक विशेष महत्व रखती है, क्योंकि देश चुनावी वर्ष में प्रवेश कर चुका है। इस बैठक में राजनीतिक रणनीतियों और आरक्षण नीति जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रस्ताव पेश किए जा रहे हैं।
मनोज झा ने बातचीत में कहा कि आज हमारी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हो रही है, जबकि कल राष्ट्रीय परिषद और खुला अधिवेशन आयोजित किया जाएगा। इस दौरान कई महत्वपूर्ण प्रस्तावों पर चर्चा की जाएगी, और पार्टी सामूहिक रूप से इन विषयों पर विचार कर ठोस निर्णय लेगी। बैठक में महागठबंधन की आगामी रणनीति, सामाजिक न्याय एजेंडे को मजबूत करने और इंडिया गठबंधन को सशक्त बनाने पर जोर दिया जाएगा।
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने मतदाता सूची में सुधार की प्रक्रिया को सही दिशा में बताया। इस पर मनोज झा ने सवाल उठाते हुए कहा कि अक्सर उनका बयान सूत्रों के हवाले से ही आता है, लेकिन आज एक प्रमुख अंग्रेजी समाचार पत्र में छपी रिपोर्ट में कई खामियों का उल्लेख किया गया है।
चुनाव आयोग के स्तर पर भारी हाहाकार है। उन्होंने आरोप लगाया कि हमने चुनाव आयोग से मुलाकात की थी, लेकिन वे शंकाओं को दूर करने में असफल रहे। आयोग से पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग करते हुए उन्होंने कहा कि मतदाता सूची की त्रुटियां लोकतंत्र की नींव को कमजोर करती हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव की हलचल के बीच ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने महागठबंधन में शामिल होने की इच्छा जताई। इस पर मनोज झा ने कहा कि ओवैसी साहब को मैं बस इतना कहूंगा कि हर चुनाव का एक अलग मिजाज होता है। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन ने पहले ही एक मजबूत आधार बना लिया है। कई बार बिना चुनाव लड़े ही मकसद पूरा हो सकता है। मुझे उम्मीद है कि ओवैसी साहब इस बात को समझेंगे।
महाराष्ट्र में हिंदी भाषा को लेकर उठे सियासी विवाद पर भी मनोज झा ने कहा कि भाषाई विवाद हमें फिर से 1960 के दशक में ले जा रहा है। केंद्रीय गृहमंत्री और महाराष्ट्र के कुछ नेताओं के हालिया बयानों पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा कि भाषाओं का आपसी संबंध बहनों जैसा होता है। यदि आप इस संबंध को नहीं समझते, तो आप किसी भाषा के सच्चे प्रेमी नहीं हो सकते। कोई भी भाषा अकेले नहीं पनपती, वह अन्य भाषाओं के साथ पूरक बनकर ही आगे बढ़ती है। प्रतिस्पर्धा नहीं, सहयोग भाषा का असली स्वरूप है।