राजस्थान में सेनेटरी पैड्स की कमी से महिलाएं परेशान
राजस्थान में सेनेटरी सप्लाई संकट
राजस्थान में सेनेटरी पैड्स की कमी: डौसा जिले की महिलाएं और किशोरियां राज्य सरकार की 'उड़ान' योजना के तहत मिलने वाले सेनेटरी पैड्स की कमी से जूझ रही हैं। यह योजना पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा शुरू की गई थी, जिसमें 11 से 45 वर्ष की महिलाओं को आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से मुफ्त सेनेटरी नैपकिन्स प्रदान किए जाते थे। हालांकि, योजना को औपचारिक रूप से बंद नहीं किया गया है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी आपूर्ति अगस्त-सितंबर 2024 से ठप हो गई है.
बालाहेड़ा ग्राम पंचायत की साथिन केशपति मीना ने कहा, 'अगस्त 2024 से सब बंद है, बड़ी परेशानी हो रही है। लड़कियों को भी दिक्कत है।' वहीं एक स्थानीय महिला शीला ने बताया, 'जब पूछते हैं तो कहते हैं—आएंगे तब देंगे।' आंगनबाड़ी इंचार्ज राधा शर्मा ने पुष्टि की कि '20 अगस्त 2024 को आखिरी बार वितरण हुआ था। कुल तीन बार ही बांटे गए। उसके बाद से कुछ नहीं आया.'
स्वास्थ्य पर प्रभाव और शिक्षा में रुकावट
स्वास्थ्य पर असर और पढ़ाई में बाधा
इस योजना के रुकने से कई किशोरियों को संक्रमण जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। हमीदन बानो, एक ग्रामीण महिला, ने कहा, 'मेरी 17 साल की बेटी जब माहवारी में होती है तो स्कूल नहीं जाती। जब कुछ मिलेगा ही नहीं, तो कैसे बांटेंगे?'
राज्यभर में समान स्थिति
पूरे राज्य में समान स्थिति
डौसा के अलावा, बांसवाड़ा सहित कई जिलों में भी यही स्थिति है। महिला सशक्तिकरण विभाग के उपनिदेशक युगल किशोर मीणा ने बताया, 'सितंबर में आखिरी बार सप्लाई हुई थी। खरीद राज्य स्तर पर होती है, RMS एजेंसी सप्लाई करती है। हम निदेशालय से लगातार संपर्क में हैं.'
योजना की अनदेखी या राजनीतिक बदलाव?
योजना की अनदेखी या राजनीतिक बदलाव?
कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा सरकार ने पूर्ववर्ती सरकार की योजनाओं को नजरअंदाज किया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा, 'सरकार की योजना को जमीनी स्तर पर लागू करने की कोई मंशा नहीं है।' वहीं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ ने दावा किया, 'उड़ान योजना चल रही है, नैपकिन्स बांटे जा रहे हैं.'
राज्य में कई पिछली योजनाओं के नाम बदले गए या बंद कर दिए गए हैं—जैसे चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना का नाम अब मुख्यमंत्री आयुष्मान आरोग्य योजना हो गया है। लेकिन इस सबका सबसे ज्यादा नुकसान उन्हें हो रहा है जिन्हें सबसे ज्यादा जरूरत है—गांव की महिलाएं और लड़कियां.