राष्ट्रीय झंडा अंगीकरण दिवस: तिरंगे की महत्ता और इतिहास
तिरंगे का सम्मान और उसकी पहचान
भोपाल। 22 जुलाई का दिन भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के सम्मान में विशेष महत्व रखता है। यह दिन हर साल राष्ट्रीय झंडा अंगीकरण दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो हमारे तिरंगे को अपनाने की ऐतिहासिक घटना की याद दिलाता है। तिरंगा न केवल भारत की स्वतंत्रता और संप्रभुता का प्रतीक है, बल्कि यह देश की एकता और विविधता में एकता का भी प्रतीक है।
मुख्यमंत्री का संदेश
आज मंगलवार को, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस अवसर पर जनता को शुभकामनाएं दीं। उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, 'राष्ट्रीय झंडा अंगीकरण दिवस की हार्दिक बधाई। तिरंगे की आन-बान-शान को विश्व स्तर पर बढ़ाने की प्रेरणा देने वाले इस पावन अवसर पर हम संकल्प लें कि हम अपने कर्तव्यों का पालन कर तिरंगे का मान बढ़ाते रहेंगे।'
तिरंगे का इतिहास और निर्माण
तिरंगे का डिज़ाइन एक निश्चित अनुपात में होता है, जिसमें लंबाई-चौड़ाई का अनुपात 3:2 है। भारत में राष्ट्रीय ध्वज का निर्माण मुख्य रूप से कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ, हुबली द्वारा किया जाता है। 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने तिरंगे को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया था। यह दिन हमें स्वतंत्रता संग्राम में किए गए बलिदानों की याद दिलाता है। तिरंगे का डिज़ाइन आंध्र प्रदेश के पिंगली वेंकय्या द्वारा बनाया गया था, जो एक स्वतंत्रता सेनानी और किसान थे।
तिरंगे का महत्व और फहराने के नियम
1916 में, पिंगली वेंकय्या ने राष्ट्रीय ध्वज के लिए एक डिज़ाइन प्रस्तुत किया, जिसे बाद में संशोधित कर तिरंगे का आधार बनाया गया। तिरंगे के बीच में नीले रंग का अशोक चक्र सम्राट अशोक के सारनाथ स्तंभ से लिया गया है। प्रारंभ में, तिरंगे को केवल खादी कपड़े से बनाने की अनुमति थी, जो स्वदेशी आंदोलन का हिस्सा था। अब इसे अन्य कपड़ों से भी बनाया जा सकता है, लेकिन खादी को प्राथमिकता दी जाती है। राष्ट्रीय ध्वज को हमेशा सम्मान के साथ फहराया जाता है, और इसे सुबह आठ बजे से सूर्यास्त तक फहराया जा सकता है। विशेष परिस्थितियों में, रात में भी तिरंगा फहराने की अनुमति है, लेकिन इसके लिए कुछ शर्तें हैं।